शहादत का जशन

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सुबह के 4 बजे,
वो सुनसान गली,
अचानक मेरी नींद खुली,
वहां सन्नाटे को चीरते हुए कुछ शोर था,
दुर से देखा तो एक पल मातम-सा लगा,
पास जाके पुछा, तो पता चला,
वो शहादत का जशन था,
जो उसके पिता की आंखों से झलका कम था,
बहुत दर्द था उसकी माँ के सीने में,
जो झलका था अश्कों की बूंदों में,
यूँ ही बेहाल था वो घर,
दुख का आलम था,
कुछ ये कहना था बेटे का,
कि पापा को कल ही तो आना था, 
बीबी सदमें में थी,
बेटी रो-रोके चीखी थी,
एक बहन थी उसकी भी,
जो चौखट पर सहमी-सी बैठी थी,
उस घर का अब यही हाल था,
कि वो आधा-सा श्मशान था,
कुछ दर्द था कुछ आंसू थे,
कुछ घर में रोने वाले थे, 
कुछ गम था कुछेक किस्से थे,
जो अब सबके हिस्से थे,
शहीद को आखिरी विदाई में सबने सलाम किया,
आज फिर एक घर ने बेटे को देश के नाम किया ।
 
                                                 - शुभम

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