मुझे फिर से उसी बू ,
उसी गर्दिश ने घेरा है,
मैंने फिर से वही लिबास पहना है ,हां जख्मो से छलनी है मेरी छाती ,
पर देख तो सही मुझे कितनों ने घेरा हैये पाँ-ए-जौला कबतलक रुकेगी मुझे ,
मेरी कलम ने तेरे फ़लसफों का असर तोड़ा है ,तीरा बख्त इस जस्त की रिफाकत ही सही ,
पर आज भी मेरी शमशीर ने तेरी तारीकियों का गुरूर तोड़ा है,शायद मैं अकेला चिराग हूं मसाफत का ,
तभी तो इस जुल्मत ए शब ने मुझे घेरा है।।
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झंकार
Poetry#1 in poetry___7. 7. 18 and 19. 8.17 कागज़ के झरोखों से झांकते, मेरी स्याही में लिपटे अलफाज....