कुमार आयुध के हाथों में मशाल थी जिसे वे ऊँचा उठाए हुए अन्य दोनों युवकों से आगे चल रहे थे । बालक युवराज की पीठ पर विराजमान था । उसका सौभाग्य!
यद्यपि ध्रुव ने युवराज से ऐसा न करने की विनती की थी व उन्हें यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया था कि वह स्वयं बालक को उठा पाने में सक्षम है अथवा बालक स्वयं ही अपने पग का प्रयोग कर चल सकता है, किंतु युवराज के अनुसार द्वितीय विकल्प उनकी कल्पना से भी परे था व प्रथम का उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया ।
वे भली-भाँति जानते थे की ऐसी स्थिति में यह युवक चलने में तो सक्षम नहीं, बालक को कैसे ही संभाल पाते ।
युवराज ने बालक का भार उठा अवश्य रखा था किंतु इसका अर्थ यह न था कि वे भी पूर्णतः कुशल थे । क्षति होने पर भी कुमार आयुध के समक्ष उन्होंने द्वार पर प्रहार करते समय उसी पग का प्रयोग किया था जिससे उन्हें विशेष तो नहीं किंतु पीड़ा तो हो ही रही थी।
यही ध्यान में रखते हुए, जब युवराज ने बालक को बाहों में उठाया था तो, कुमार आयुध ने 'स्वयं'- हाँ! स्वयं उन्होंने बालक को लेकर युवराज की सहायता करनी चाही थी, किंतु बालक को कुमार आयुध के तीक्ष्ण नेत्र व खड्ग-सी भौंहें कुछ अधिक की कठोर लगे जिससे वह युवराज के गले में हाथ डालकर लिपट गया व स्पष्ट रूप से कुमार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।(इस बालक को भान भी नहीं वह कितना भाग्यशाली है।)
सौभाग्य से यह व्यक्ति युवराज थे व ध्रुव वहीं उपस्थित था किंतु किसी अपरिचित पर विश्वास करने में इस बालक को समय ही कितना लगा? प्रेम से दो शब्द कह दिए एवं मिष्ठान का भोग लगा दिया । हो गया! तथा वह व्यक्ति जिससे भयभीत होकर यह भागा था इसका मित्र बन गया। यह देखकर ध्रुव ने माथा पटक लिया। उसे समझ न आया था कि वह बालक की इस क्रिया पर हँसे अथवा रोए?
अभी तो उसका ध्यान युवराज की ही दिशा में था । संकोच वश अधिक कह न सकता था किंतु वह अपने कारण युवराज को किसी भी प्रकार का कष्ट न देना चाहता था । वह अपनी हिचकिचाहट भीतर ही दबाए चुपचाप दोनों कुमारों के साथ-साथ चलता रहा । वहीं उस बालक ने अपने र्निदोष स्वर व चतुर ढंग में युवराज से वार्तालाप छेड़ रखा था !
कितनी ही बेसिर पैर की बातें कर रहा था किंतु युवराज बड़े ही धैर्य से उसके प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे। अभी तक उन्होंने बालक को यह विश्वास दिला दिया था की यह सब किसी क्रीड़ा से अधिक कुछ न था।
बालक के समक्ष पिछली घटना पर किसी भी प्रकार की चर्चा करना युवकों ने उचित न समझा था । यदि शीघ्र ही यहाँ से निकलने का मार्ग प्राप्त हो तो तत्पश्चात सब संभव है।
बालक निश्चिंत होकर अपने आसन पर बैठा था । उसने अपने निराले ढंग में होठों के बीच मिष्ठान का एक बड़ा टुकड़ा दबाया व भरे हुए मुँह से बोला,"...तो या तीदा दा अंत दब होदा... मुदे ये तीदा अब अच्छी नी लगली...!(तो इस क्रीड़ा का अंत कब होगा? मुझे यह क्रीड़ा अब अच्छी नहीं लग रही!)
वह यह बोल ही रहा था कि ध्रुव ने गहरी श्वास लेकर होठों के भीतर ही कहा,"तुम पहले खा लो अथवा बड़ाबड़ा ही लो...।"
किसी के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिन बालक ने पुनः बोलना आरंभ किया,"मुदे अ..." उसने दूसरा टुकड़ा लिया,अपनी छोटी-छोटी अंगुलियों की सहायता से उस पर से अनिच्छित वस्तु बड़े ध्यान से निकाल फेंकी एवं पहले से भरे हुए मुँह में यह टुकड़ा डालकर बोलना आरंभ किया ही कि श्वासवरोध से खाँसने लगा । ध्रुव को क्षण भर भी न लगा उसने आगे बढ़कर बालक की पीठ थपथपाई व चिढ़ते हुए होठों के भीतर ही अस्पष्ट स्वर में कहा,"...आशा है अब जिह्वा पर अंकुश होगा..।"
बालक ने स्वस्थ होते ही बाल क्रोध में ध्रुव की हथेली अपने पर से हटाई व उसे धक्का दे दूर हटाने का असफल प्रयास करने लगा । ध्रुव को दूर हटाकर वह पीछे से लव के गले में हाथ डालकर उससे चिपक गया। ध्रुव ने भी स्पष्ट कह दिया कि तत्पश्चात वह उसके पास दौड़ा हुआ न आए।
बालक ने उत्तर में मामाश्री को चिढ़ाना उचित समझा। बस फिर क्या था! दोनों ही भाँति-भाँति के मुख बना-बना कर चिढ़ाते रहे। दोनों ही अन्य दो व्यक्तियों की उपस्थिति भूल गए। बालक जीभ दिखाकर चिढ़ाता तो ध्रुव कौन-सा शांत हो जाता ! वह भी उसके संग बालक बना था ।
पहले तो युवराज बालक की स्थिति से कुछ चिंतित से हुए थे किंतु इन्हें यह नाटक करते देखकर हँस पड़े । क्या वह स्वयं भी भ्राता शंस संग ऐसा ही व्यवहार न करते थे !
टप्पणी:
क्रीड़ा - game
श्वासवरोध - (here)to choke
अस्पष्ट स्वर में कहना - to mumble
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शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)
Historische Romaneश्वास का मंद स्वर,केश इधर-उधर बिखरे हुए,उसके ओठों पर गहरा लाल रंग छाया हुआ,अर्धचंद्र की चांदनी में उसका मुख उन पारदर्शी नयनों से अलौकिक प्रतीत हो रहा था .... An Indian historical bl (युवालय) written in Hindi. Starts on - 31st March, 2023 {Friday}