अध्याय १३

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आयुध के मुख से यह शब्द सुनते ही युवराज स्तंभित से रह गए । लगध-कुमार ने लव की हथेली को मुठ्ठी में बँधते अनुभव किया । मानव रक्त...। लव के भय में वृद्धि हुई । कुछ स्मृतियाँ लौटकर उसके नेत्रों के समक्ष तैरकर कहीं अदृश्य हो गईं । चंद क्षण पश्चात इस भय व आश्चर्य की स्थिति से कुछ उबरते हुए युवराज ने कहा,"...कृपा कर समझाएँ । मैं यहाँ देख पाने में असक्षम हुं । कृप्या अधिक विवरण दें...।" उसे स्वयं की देह का भार अधिक प्रतीत होने लगा था जिससे वह संतुलन बनाए रखने हेतु तलवार पर अधिक निर्भर हो गया ।

लगध-कुमार ने गंभीर व धीमे स्वर में उत्तर दिया,"रक्त से मलीन किसी वस्त्र का फटा टुकड़ा, भूमि पर सूखा रक्त है एवं एक पदत्राण यहाँ युवराज के समक्ष पड़ा है।"

वाक्य का अंतिम भाग सुनते ही लव एक पग पीछे हट गया । यह प्रतिक्रिया आयुध को संकोचित कर देने वाली थी। वे आरंभ से ही कुछ वार्तालाप कर युवराज का मन बहलाना चाहते थे जिससे लव को इस अंधकार का अधिक भान न हो । मन में आता कुछ कहें । किंतु क्या कहते? सोलह वर्ष के इस जीवन में उन्होंने कभी सांत्वना देना न सीखा था । शर्व के अतिरिक्त उनके निकट दुःख लेकर आता भी कौन था।

गुरुकुल में दोनों भाइयों में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हुआ जिसने शर्व को माता के शब्दों से भटकाकर अग्रज पर अटूट विश्वास रखने पर विवश कर दिया । जब दोनों गुरुकुल में शिष्य थे तब शर्व जो सभी से छोटा व दुबला-पतला था, अन्य बालकों द्वारा चिढ़ाया जाता था । तब ज्येष्ठ ही उसकी रक्षा करते थे। वह माता के शब्दों को भुलाकर, ज्येष्ठ से चिपककर रोता व आयुध अपने नन्हें हाथों से उसके रेशमी केश सहलाते हुए निर्दोष व धीमे स्वर में कहते,"शांत हो जाओ..."

तथा वर्षों पश्चात भी इस स्थिति में अधिक परिवर्तन न आया था। अब भी शर्व चिंतित होता, दुःखी होता, दुविधा में होता, तो ज्येष्ठ के निकट बैठकर अपनी कथा सुनाने लगता । अधिक चिंता में किसी दिवस कथा सुनाने का साहस न हो तो बिन कुछ कहे, अग्रज के कंधे पर सिर रखकर बैठ जाता ।

शाश्वतम् प्रेमम्(Eternal love)Donde viven las historias. Descúbrelo ahora