"अम्मा बस करो ना कितना तेल लगाओगे मुझे पहले से ही देर हो रखी है", झरिया ने अपनी मां से कहा जो दनादन तेल की मालिश उसके सर पर किए जा रही थी |
"अम्मा जाने दो ना", झरिया फिर से चिल्लाया |
" क्यों ऐसी क्या आफत आ जाएगी", झरिया की मां ने उसे डांटते हुए कहा, "दो पल भी टिक कर बैठा है तू| इधर से उधर बस कूदता रहता है| जब मैं नहीं रहूंगी ना कुछ कहने को तब याद आएगी तुम्हें अम्मा की|
"तुम नहीं समझोगी रहने दो|" झरिया चुपचाप बैठ कर सोचने लगा ,'अम्मा को तो फर्क ही नहीं पड़ता है| वह हरिया ,कल उससे शर्त लगी थी कि कौन कितने शहतूत तोड़ेगा| वह तो चला जाएगा सुबह-सुबह|'झरिया ने गुस्से के मारे मुंह जरूर फुला रखा था पर उसने कुछ कहा नहीं क्योंकि उसे अच्छे से पता था ,अगर उसने अम्मा को कुछ बोल दिया तो उसको जाने नहीं देंगे और वह हरिया फिर से हंसेगा|
करीब 10-15 मिनट बाद उसकी मां ने उसका सिर छोड़ दिया,"ले हो गया, यूं ही उतावला हो रखा था| अब जा कर ले अपना काम ,पता नहीं कौन सी अफसरी कर रहा है| बिल्कुल अपने पापा जैसा हो गया, ना घर में कोई हाथ बटाता है|इतना बड़ा हो गया, इतनी उम्र के बच्चे आधा काम निपटा देते हैं| पर यहां इनको अपनी मस्करी से ही फुर्सत नहीं है| गलती कर दी ऐसी औलाद पैदा करके|" उसकी मां बड़बड़ा रही थी|
क्या करें खेत संभालना, घर संभालना, तीन-तीन बच्चे संभालना ,उसके लिए भी तो मुश्किल था ना| झरिया के लिए तो यह रोज की बात थी| इसलिए उसने अपनी मां की बात को अनसुना कर दिया| अगर सुन भी लेता तो भी वह कहां रुकने वाला था, उसकी शर्त जो लगी थी भाई ,वह भी हरिया से! ऐसे थोड़ी ना हार जाएगा झरिया!
मां के हाथों से छूटते ही उसने नंगे पैर गांव के बाहर वाले शहतूत के पेड़ की तरफ दौड़ लगा दी|भागते वक्त उसने इधर उधर कहीं नजर नहीं घुमाई ,सीधा वहीं अपनी मंजिल पर जाकर रुका|
बच्चों की यही खासियत होती है, वह भूलते नहीं है किसी बात को और जो करना होता है, वह करके ही दम लेते हैं| उसने इधर-उधर सिर घूमाया तो उसे पता चला कि अभी तक तो कोई भी नहीं आया है,'ओह तो हरिया की मां ने भी उसे रोक लिया'|
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कुछ यादें ऐसी भी
Short Storyबचपन के वो दिन जिनमें ना गर्मी का एहसास होता, ना बारीश में भीगनें का डर और ना ही सर्दी में छुटती कंपकंपी की परवाह | फिक्र होती तो बस इसी चीज की कहीं माँ खेलने जाने को मना ना कर दे | कहीं तुम्हारे दोस्त तुम्हारा इंतजार करते हुए मायुस ना चले जाए | कही...