बचपन के वो दिन जिनमें ना गर्मी का एहसास होता, ना बारीश में भीगनें का डर और ना ही सर्दी में छुटती कंपकंपी की परवाह | फिक्र होती तो बस इसी चीज की कहीं माँ खेलने जाने को मना ना कर दे | कहीं तुम्हारे दोस्त तुम्हारा इंतजार करते हुए मायुस ना चले जाए | कहीं वो तुम्हारे साथ बार बार लड़ने वाला कलुआ वो आम ना तोड़ ले जिसके पकने का इंतजार तुम अम्मा की डांट खाने के बाद बेसब्री से कर रहे हो | ऐसी ही कुछ खट्टी मीठी यादों को मैं देने जा रही हुं छोटी छोटी कहानियों का रूप | पढ़िए और बताइयेगा की कैसा था आपका बचपन | हो सकता है किसी कहानी में आपको आपके बचपन की झलक मिले | Love, love ❤