यह कहानी भारत के आजकल के अंतर्मुखीपने से ग्रसित एक ऐसे युवक की कहानी है, जो बहुत प्रतिभावान है किन्तु अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण कक्षा में कोई उससे बात नहीं करता और यहाँ तक की अध्यापकों के लिए भी उसका अस्तित्व शून्य है। पूरी कक्षा उसे दब्बू, किताबी कीड़ा या घमंडी समझती है और उसके विषय में अलग - अलग धारणाएं बनाती है। किन्तु, ग्याहरवीं कक्षा के प्रवेश के साथ जब वह अपने आप में परिवर्तन लाने की चेष्टा करता है, तो उसका अंतर्मुखीपन, झेंप और डर कैसे उसके मक़सद में रुकावट बनते हैं, पर वह सारी बाधाओं को लांघकर, एक लड़की जया की सहायता से अपने डर के ऊपर विजित होकर अपने आप में परिवर्तन लाता है और अपने विषय में लोगों की धारणाएं बदल देता है।
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