इस लिये कुछ कहता नही।

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दरार-ए-दोस्ती न हो,
इस लिए कुछ कहता नही,
तू अकेला मुसाफिर है इस कश्ती का,
इस लिए किनारो को में देखता नही,
जो किनारे पे चले,
तो तू चला जायेगा,
जो तू चला गया तो कोन इस कश्ती को किनारा लगाएगा,
बस इसी खौफ को लिये में समन्दर से कभी डेहता नही,
डरता हूँ कही खो न दु तुझे भी, इसी लिए कुछ कहता नही।

कवितायें गुजरती रातों में।Where stories live. Discover now