दरार-ए-दोस्ती न हो,
इस लिए कुछ कहता नही,
तू अकेला मुसाफिर है इस कश्ती का,
इस लिए किनारो को में देखता नही,
जो किनारे पे चले,
तो तू चला जायेगा,
जो तू चला गया तो कोन इस कश्ती को किनारा लगाएगा,
बस इसी खौफ को लिये में समन्दर से कभी डेहता नही,
डरता हूँ कही खो न दु तुझे भी, इसी लिए कुछ कहता नही।
आप पढ़ रहे हैं
कवितायें गुजरती रातों में।
Poetryनमश्कार दोस्तो, मेरा नाम सूरज सिंह है, लखनऊ शहर का निवासी हु, जल्द ही मेने लिखना शुरू किया है, ये मेरी कुछ छोटी कविताये है, आशा करता हु आपको पसंद आये।