चैप्टर १

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इंडिया, एक ऐसी कंट्री है, जहां कई अनसुनी और अनकही बातें होती है। कुछ ऐसी जो कभी किसी ने न देखी होंगी और कुछ अनजानी सी। कहते तो हैं कई लोग की पिशाच, व्रिक और डाकिनी जैसी कोई चीज नहीं होती। पर आज भी ये सब हमारे बीच सांस ले रहें हैं।

नहीं ये सब चीजें सिर्फ वेस्टर्न लोगों की कहानियां नही हैं पर हकीकत हैं। कई पुराने शहर जो सदियों पुराने हैं, वो सब आज भी इन सब चीजों के गवाह हैं। कई पैरानॉर्मल रिसर्चर्स और इतिहासकार ये जानने में लगे हैं की इन सब चीजों का वजूद है या नही? और अगर है, तो ये सब आएं कहां से? आपका क्या मानना है?

आज २०२२ का नया साल है, पर ये कहानी वैसे तो सदियों पुरानी है पर इसका पहला चैप्टर लिखा गया २०१४ में जब माया अपने परिवार के साथ डलहौजी शिफ्ट हुई।

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एक बर्फीली शाम थी और एक खाली रोड पर एक लाल रंग की गाड़ी सर.... सर.... करके भाग रही थी। गाड़ी मे पांच लोग बैठे थे। जिनमें ड्राइविंग सीट पर करीबन ४२ साल के एक आदमी थे। उनकी दाई तरफ एक ४० वर्षीय औरत और पैसेंजर सीट पर तीन बच्चे, एक लड़का और दो लड़कियां। ड्राइविंग सीट पर जो बैठे थे उनका नाम दुष्यंत सिंह है। वो २५ साल बाद अपने शहर डलहौजी जा रहें हैं। एक ज़मीन खरीदी है, जो टिंबर प्रोजेक्ट के लिए यूज होगी। दाई ओर उनकी पत्नी, वसुधा, एकेडमिक सेक्टर में काफी समय से काम कर रहीं हैं। यहीं डलहौजी के एक स्कूल में जॉब करने का प्लान बनाकर दिल्ली से पति के साथ उनके शहर जा रही हैं।

साथ मे दो बेटियां है, माया और अनिका। उन्ही के साथ पीछे पैसेंजर सीट पर घर का सबसे छोटा सदस्य और दुष्यंत का बेटा आरुष भी बैठा है। आरुष को देख कर पता चल रहा था कि वो काफी खुश है क्योंकि फैमिली साथ में हिल स्टेशन जा रही है।

जहां आरुष खुश है, वहीं माया शांत है और थोड़ी दुखी भी, वहीं अनिका को देख कर ऐसा लगता है जैसे कुछ अलग हुआ ही नहीं। माया उदास इसलिए है क्योंकि अपनी पूरी लाइफ दिल्ली में बिताने के बाद अब एक नए और अनजान शहर में जाना पड़ रहा है। सारे जानने वाले, सारे दोस्त और सारी यादें वहीं दिल्ली मे छूट गईं। और अब क्योंकि उसके पापा का काम यहीं होगा तो शायद वापस जाना कभी हो भी न।

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