देवलोक की अदालत

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‌स्वर्गलोक में आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। जबसे अहिल्या का पाषाणरूप से उद्धार हुआ था उसने अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर खुलासों की बौछार कर दी थी। पहले तो इंद्र समेत सभी देवताओं ने उसे इग्नोर किया लेकिन कुछ ही घंटों में अहिल्या के पोस्ट को 4000 से ज्यादा लाइक्स मिल चुके थे। बड़े ही कड़े लफ्ज़ों में इंद्र की थू थू हो रही थी। यहाँ तक कि कामदेव भी निंदकों की टोली में शामिल हो चले थे। अब ऐसे में क्या किया जाये? कोई मानहानि का मुक़दमा करने को कहता तो कोई रिपब्लिक पे लाइव होने की सलाह देता। लेकिन किसी भी सलाह पे आम राय नहीं बन पाई। बहुत सोच समझ कर देवताओं ने तय किया कि इस बारे में बैकुंठ जा कर विष्णु भगवान से सलाह मशविरा किया जाये। उन्होंने भी कृष्ण रूप में बहुत से गुल खिलाये थे और उनके राम रूप से तो पृथ्वीलोक की सभी सीतायें नाराज़ थीं।
"लेकिन परमपिता ब्रह्मा तो सबसे बड़े और पूजनीय हैं। उनकी राय जाने बग़ैर मैं कुछ नहीं कह सकता!" माता लक्ष्मी की तिरछी निगाहों से घबरा कर उन्होंने अपने माथे का सिर दर्द ब्रह्मा जी के हवाले कर चैन की सांस ली थी। अब इंद्र अपनी टोली समेत ब्रह्मा जी के दर पे पहुँचे। चार चार सिरों से दुनिया देखते देखते उन्हें माइग्रेन की शिकायत हो गई थी। अपने घर में बिन बुलाए मेहमानों को देख कर बड़ी हुई रुखाई से बोले-"क्या है? देख नहीं रहे हम ब्रह्मांड पे अपनी दृष्टि गड़ाए बैठे हैं। हमारे पास हहा ठीठ्ठी करने की फुर्सत नहीं है। जो बोलना है बोलो और दफ़ा हो जाओ।"

'कितना तो मेलोड्रामा करते हैं परमपिता भी। यूँ तो आधा वक़्त औंघाई लेते रहते हैं और जब चोरी पकड़ ली गई तो डाँट रहे। अग़र दुनिया पे ऐसी ही नज़र होती तो...' धीमी आवाज़ में इंद्र बड़बड़ाये। लेकिन वरुण देव ने उन्हें पीछे से धौल जमाई। उनकी चोट से संभल कर इंद्र में अपनी आवाज़ में अमूल बटर लगाते हुए कहा- "परमपिता आप तो सर्वज्ञानी हैं, आपको तो मालूम ही होगा कि अहिल्या मृत्युलोक के वासियों को गुमराह कर रही है। धरती पर मेरा बेजा चरित्र हनन हो रहा है.."

"तो इसमें मैं क्या करूँ?" परमपिता ने घुड़कते हुए जवाब दिया। शायद वे कुछ देर पहले की फुसफुसाहट सुन चुके थे। ऑफ्टरऑल वे सर्वद्रष्टा जो ठहरे।

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