दिल की सुनने वाले

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'दिल की सुनो'
'दिल की बातें सच्ची होती हैं'

लो भला। कहने वाले तो कह देते हैं बिना सोचे विचारे लेकिन ऐसे कैसे दिल की सुन लें और उसे सच मान लें? दिल तो कुछ भी कहता है। बॉलीवुड ही नहीं हॉलीवुड भी दिल को कुछ ज्यादा ही छूट दे देता है। हालांकि बॉलीवुड तो नौसिखिये आशिक़ों के दिलों हाल बयां करता है लेकिन हॉलीवुड में दिल की सुनने वाले स्टीव जॉब्स, जुकरबर्ग जैसे होते हैं। अब बताओ लाखों लोगों के दिल को चकनाचूर किये बग़ैर ऐसा मुमकिन है क्या? ना आशिक़ अपनी माशूका के दिल की परवाह कर सकता है और ना जुकरबर्ग अपने कर्मचारियों की। वैसे भी दिल की बात सुनने में ख़ैरियत कहाँ? एलन मस्क की सुनें तो हफ्ते में 120 घंटे काम भी कम कहलायेंगे। लेकिन दिल की बात भर सुन लेने से घंटे के 15 $ नहीं मिल जाते। कारें फूँकनी पड़ती हैं, पुलिस के डंडे खाने पड़ते हैं।

मुहम्मद बिन तुग़लक को एकबारगी ख्याल आया दिल्ली से दौलताबाद से शासन चलायें तो उस की ख्वाहिश में लाखों लोग मारे गये। प्रधानसेवक भी दिल की सुनते रहते हैं। वो तो शुक्र है कि उनके दिल की बात पूरा देश हर महीने सुन लेता है, नहीं तो बेदिली में वे जाने क्या क्या कर बैठें। (नोटबंदी सफल रही और लोग सही सलामत रहे।)

ख़ैर। छोटे अंबानी का भी दिल किया होगा चलो राफेल जेट बनाया जाए, सो उसमें बुरा क्या? उनकी भतीजी ने भी अपने शौक में ही बेयोंस को बुलवाया होगा। शौक पे तो बड़े बड़े लोगों ने अपनी जान दे दी, उसने तो बस मंगलयान के बजट जितना खर्चा करवाया। बैंकों ने भी नीरव मोदियों के दिल की सुनी इसलिये तो एनपीए पे एनपीए चढ़वा बैठे। वे भी क्या करते, उनके बॉस उर्जित पटेल भी जेटली भाई की ही तो सुन रहे थे। काश कि अपने दिल की सुन लेते और पहले ही इस्तीफा देकर विदा हो जाते। लेकित दिल का मामला बड़ा पेचीदा ठहरा। इसने तो पूरी दुनिया को ही मुसीबत में डाल रखा है। ट्रम्प को दीवार चुनवानी है, एंजेलिना जॉली को प्रेसीडेंट बनना है, बोलनसोरो को अमेज़न की सफाई चाहिए, ब्रिटेन को ब्रेक्जिट और ओबामा को नेटफ्लिक्स। लेकिन मुहम्मद बिन सलमान के आगे सभी फीके पड़ जाते हैं। और क्यों ना हों, भला और कौन गॉडफादर अंदाज में बंदा कत्ल करवा सकता है? अरे ठाकरे, अमित भाई तो देशी लोग हैं। और अमरीका को तो फ़ौज भेजनी पड़ जाती हैं। लेकिन प्रिंस के दरबार में तो बंदा अपना सर क़लम कराने खुद चला आता है। कुल मिलाकर अपने अपने दिल की बातें सुनने सुनाने का चस्का सबको ही लग गया है। लेकिन दिल तो बच्चा है जी। कल जो चाहिए था वो आज नहीं चाहिए। दिल की अदला बदली तो रातों रात हो सकती है। एक पल में ही ऐश्वर्या को अजय देवगन से प्यार हो सकता है। एक गुंडा पलक झपकते ही डॉक्टर बन सकता है। हृदय परिवर्तन तो वैसे भी गाँधीवादी विचार है।
इसलिये तो सुप्रीम कोर्ट ने भी सीख लेते हुए अपने दिल का कैसेट बदला और 377 और 497 पर काली स्याही पोत कर रामदेव बाबा का दिल दुःखा दिया। पहले ही पटाखों पर पाबंदी लगा कर हिन्दू लोगों का दिल दुखाया अब सबरीमाला पर दुःखा रहे हैं। अर्नब का भी ख्याल नहीं किया। तिस पर भी हिंदुओं को सब्र नहीं है रामलला को बीच में ला रहे हैं। मुस्लिम भाई भी बेसब्र हो रहे। उनके दिल पर तलाक जैसा भारी लफ्ज़ आकर बैठ गया जिसे जुबां पर लाने में पाबंदी ठहरी।
अभी तो सुप्रीम कोर्ट की बात कोई सुन नहीं रहा, मन की सुनने में तो सैकड़ों बाधाएँ हैं। देखा नहीं बेचारा राहुल ईश्वर कितना परेशान है। बेचारे ने भीड़ भी जुटाई, लाठी डंडे भी बरसवाये लेकिन फिर भी दो कुलच्छिन औरतें मंदिर में घुस गईं। शायद उन औरतों ने भी अपने अपने दिल की सुनी होगी। लेकिन वे तो नास्तिक थीं। नास्तिकों का कैसा दिल?
वैसे इस देश की औरतें भी बड़ी काइयाँ हो गई हैं। अभी 2017 में कहने लगीं कि हम छेड़खानी नहीं सहेंगे और अभी तो जबरन उस मंदिर में घुस जाना चाहती हैं जिसके देवता उनको नहीं बुलाते। पिंजड़ा तोड़ की बातें भी कर रहीं। अब कल को कुछ ऐसा वैसा हो जाने पर मीटू भी बोल देंगी। ये भी कोई बात हुई? दिल की बात के लिये ख़तरों की खिलाड़ी बन जाना भी कोई समझदारी है? रानी मुखर्जी ने जो कहा था ठीक कहा था। इससे अच्छा तो वे कुंगफू कराटे ताई ची सीख लेतीं। कल को पेशाब करने बाहर जाना पड़ा तो पाँच छह मुश्टण्डों को गिराने लायक हुनर तो सीख जातीं। लेकिन ककड़ी सा फिगर लिए उन्हें रातों को घूमना है। लड़कों की बराबरी करनी है। सत्यानाश हो जाए ऐसे दिल का। अभी तो ना जाने कितने सत्यानाशी लड़के लड़कियाँ माँ बाप के दिल पर मूंग दल रहे हैं। लिव इन में रह रहे हैं। कहाँ तो उन्हें लव जिहाद से अपनी बहनों को बचाना चाहिए था लेकिन वे तो बस वैलेंटाइन डे और हैप्पी न्यू ईयर मनाने में व्यस्त हैं। सारा काम युवा वाहिनी, बजरंग दल के माथे मढ़ कर ऐश कर रहे हैं। उस पर तो स्वैग ऐसा कि फेसबुक पर बतोलेबाजी करते हैं। सरदार की प्रतिमा पर उंगली उठाते हैं। ऑक्सीजन सिलिंडर मंगवाने की बात करते हैं। दीवाली पर प्रदूषण की शिकायत करते हैं लेकिन ईद पर चुप्पी साध लेते हैं। विवेक भाई ठीक कहते हैं। अर्बन नक्सलियों से पूरा देश प्रभावित हो चुका है। इनका दिल क्रिस्चियन मिशनरियों ने खरीद लिया है इसलिये जब देखो तब बस खामखां की आज़ादी मांगते रहते हैं। अब पता नहीं ऐसी कौन सी आज़ादी चाहिए जो सऊदी अरब में मिलती है यहाँ नहीं? राम मंदिर तो अभी बना नहीं और ये लोग रोजगार मांग रहे हैं।

जब सभी अपने दिल की सुन रहे तो मैं भी अपने दिल की सुनना चाहती हूँ। किसी संस्कारी स्वदेशी दिल को वू करना चाहती हूँ। सोच रही हूँ चेतन भाई से ही मशविरा कर लूँ।

दिल की सुनने वालेWhere stories live. Discover now