बारहवीं की पढाई के बाद, मैंने घर पर जिद्द करके आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता जाने का निर्णय किया। माँ मुझे जाने देना नहीं चाहती थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं अकेला वहां कैसे रहूँगा? घर के खाने के बिना मुझे नींद कैसे आएगी? मेरे इस निर्णय से नाराज़ होकर माँ ने मुझसे पूरे एक सप्ताह तक बातें नहीं की। पर जब उन्हें तसल्ली हो गयी, के मैं वहां बिलकुल ठीक रहूँगा, तब वो मान गयीं। और इस प्रकार मेरे जीवन के दूसरे पड़ाव की शुरुआत हुई।
कोलकाता। जैसा मैंने सुना था इसके बारे में, यह बिल्कुल उसके विपरीत ही निकला। कोलकाता, रईसों का शहर, पर यहाँ भी इतनी ही गरीबी थी, जितनी किसी अन्य राज्य में होगी। मैं कोलकाता के एक ग्रामीण किन्तु खासा जाने - पहचाने जगह पर रहता था। टॉलीगंज उस जगह का नाम था। बाहर-बाहर तो अमीरी झलकती थी, पर किसी भी गली में घुसते ही कोई भी सच्चाई से वाकिफ हो सकता था। वहां के एक प्राइवेट कॉलेज में मैंने अपना नामांकन करवाया। खैर, जैसा की मैं पहले बता चुका हूँ, पिताजी की आमदनी कुछ ख़ास नहीं थी, इसलिए मुझे पढ़ाने का जिम्मा मेरे दादाजी ने लिया था। जबसे मैंने होश संभाला था, मेरी सुबह दादाजी के गाये गीतों से होती थी। वह हर सुबह की शुरुआत भगवदगीता के श्लोकों से करते थे। और फिर उन्ही श्लोकों को सुनकर मेरी नींद खुलती थी। जो भी गुण मुझे मिले, मैं उनका पूरा श्रेय अपने दादाजी को देता हूँ। खैर, वापस कोलकाता चलते हैं। दूसरी बार कोलकाता आया था, और पिताजी भी साथ थे। पहली बार मैं अपने इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने आया था, खैर उसमे सफल हुआ नहीं, वरना किसी और कॉलेज से इंजीनियरिंग कर रहा होता।
खुद को एक कॉलेज में पहली बार देखकर ख़ुशी भी हो रही थी और अजीब भी लग रहा था। ख़ुशी इसलिए कि मैं अब कॉलेज में आ गया हूँ, स्कूल का जमाना गया, और अजीब इसलिए, कि मैं कॉलेज में आ गया हूँ? स्कूल का जमाना गया? कॉलेज के एडमिशन फॉर्म में अपना नाम भरते समय अजीब सी ख़ुशी हो रही थी। मन ही मन में सोच रहा था कि अब जब मैं कोलकाता आ गया हूँ, तो घर के रीति-रिवाजों से छुटकारा मिलेगा। एक खुद का फ्लैट लूंगा, और हर रविवार, कॉलेज की छुट्टी होने पर दोस्तों को बुलाकर पार्टी करूंगा। पर पिताजी ने सारी आशाओं पर पानी फेर दिया। "तुम हॉस्टल में रहोगे।", पिताजी ने कहा। "पर पापा हॉस्टल में ढंग का खाना-पीना नहीं होता है, और ये आप भी जानते हैं", मैंने कहा। पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी। और अगले ही क्षण हम हॉस्टल के गेट पर थे।
हॉस्टल 3 माले का था, और दूसरे माले का एक कमरा मुझे आवंटित हुआ था। वह कमरा मेरे अलावा दो और भी लोगों को आबंटित था। एक झारखंड राज्य का था, और एक ओडिशा का। अगले दिन हमारे कालेज का पहला दिन था, और हम सब तय समय पर अपने क्लासरूम में बैठे हुए थे। उस क्लासरूम में हमारे अलावा लगभग 60 स्टूडेंट्स और भी थे। सबके सब सजधज कर आये थे। ल़डकियों ने रंग-बिरंगे कपड़े पहने थे, और लड़कों ने एक से बढ़कर एक सुगंधित इत्र लगाया था।