मेरे बारे में

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मेरा पूरा नाम कुमार अभय राज है। मेरे दोस्त मुझे अभय सिंह कहते हैं। अभय सिंह इसलिए, क्योंकि मेरे जन्म लेने पर मेरी माँ ने सोचा कि अगर सिंह ही उपनाम रहा तो इसे सरकारी नौकरी मिलने में सामान्य जाति का होने पर समस्या होगी, इसलिए सिंह बन गया राज। घर - बिहार। हाँ, आपने सही सुना। मैं उसी राज्य का हूँ, जिससे पूरा भारत नफरत करता है। अच्छा ठीक है, पूरा नहीं, लेकिन आधा भारत तो जरूर करता है।

एक सामान्य मध्यम वर्गीय लड़के की तरह मैं बड़ा हुआ। बचपन में दादाजी के थैली से पैसे चुराना, माँ के रसोई से दूर जाने पर दूध की छाली खा जाना, पिताजी के घर पर न होने पर उनकी स्कूटर चलाने की कोशिश करना, हालाँकि उस स्कूटर को स्टार्ट करने में कितनी ही बार मेरे पैरों में चोट लगी थी। बहन से घर के सारे काम करवाना, और अपने छोटे भाई को खुद से भी ज्यादा प्यार करना। जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी, गलतियां महसूस होती गयीं। पर तबतक मैंने अपने जान से भी ज्यादा प्यारे भाई को अपनी हरकतों से बिगाड़ दिया था।एक दिन दादाजी के थैली से २ रुपये चुराते हुए माँ के द्वारा रंगे हाथों पकड़ा गया। माँ ने माचिस की जलती हुई तीली मेरे हाथों में लगाकर मुझसे अपनी गलती का एहसास करवाया, और मेरी चोरी की बुरी आदत छूट गयी। एक दिन माँ को मेरी गलती के कारण रोते हुए देखकर प्रण किया की अबसे ऐसा कुछ न करूंगा।और शायद उस दिन से ही मेरे बुरे दिन कि गिनती शुरू हुई। मैंने चोरी छोड़ दी, झूठ बोलना छोड़ दिया, बचपन में स्कूल में एक लड़के ने गुटखा खाना सिखाया था, वो भी छोड़ दिया। खैर, तभी सिगरेट उतनी प्रचलित नहीं थी, वरना मैं तो वो भी चख चुका होता।

जैसे जैसे समय बीतता गया, मेरे अंदर की अच्छाइयां बढ़ती गयी, और दुनिया को मुझमें कमजोरियां दिखती गयी, क्योंकि दुनिया के अनुसार जो अच्छा है, वो कमजोर है, जो कम बोलता है, वो कमजोर है, जो चुप रहता है, वो कमजोर है, जो गुस्सा नहीं करता, वो कमजोर है। 

पिताजी की कोई तय आमदनी नहीं थी, इसलिए उनकी आमदनी के मुताबिक हमारे स्कूल बदला करते थे। अगर अच्छी आमदनी हुई, तो प्राइवेट स्कूल, और कम हुई, तो सरकारी स्कूल, पर हम खुश थे। हम मतलब हम तीन भाई-बहन। मैं सबसे बड़ा, मेरे बाद मेरी छोटी बहन, और फिर छोटा भाई। 

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