बेचैनी

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सफर में हैँ हम राही, 
           चलते यूँ ही जाना हैँ
                     ठिकाना तो दूर कहीं.
बक्त  बे बक्त याद आते हैँ कई
             कोई साथ तो कई छूटे कहीं.
         मन तो हैँ बेचारा,
समझता नहीं, पर क्या हैँ चारा?
   जो छूटे बो आते नहीं
गर मिले तो बो, बह ना मिले दोबारा.
  कहीं तो पल हवा के झोकों जैसा
गर मिले, पर नहीं हैँ पहले जैसा
            बक्त निकले दुरिया तै करते करते
आते जाते यूँ ही मिलेंगे
                  बस राह बढ़ते बढ़ते

Poems~•Where stories live. Discover now