भावना

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हाथ में नया फ़ोन आया बह भी एंड्राइड, खुशियाँ जैसे झोली में समां नहीं रहे थे. जमाना नया, तौर तरीके नये हाथ की हतेली में फ़ोन, टीवी, क़िताब.. सब समां गए. घरेलु काम काज से छुट्टी मिली नहीं की बस भीड़ गए इस खिलौने से. बक़्त का पता नहीं, आँखोकी परबा नहीं, अजब हैँ ये दुनिया.
पहले दिन फेसबुक अपडेट की, एक अच्छी सी फोटो क्या लगाया फ्रेंड रिक्वेस्ट आना शुरू हो गए. मजा आया पुराने बिछड़े कितनो से फिर जुड़ गए. आज फलाने का जन्मदिन तो कल कुछ और. दूर से बधाई मेलमिलाप. कौन कितना सच्चा हैँ समझना मुश्किल. ऐसे ही.....

पुष्पेंद्र से अक्सर बात होती थी. सूंदर सी बीबी और बच्चे के साथ रहा करता था मेरे ही जिले में. अच्छे भले परिवार से, नौकरी पेसा आदमी, बचपन से ही जानते थे. गाना बजाना तो सौक रहा, इस चलते कभी जिले के बाहर भी जाना होता था.
साल भर निकल गया कोई खैर खबर नहीं.अचानक एक दिन कुमार सानू के साथ एक पोस्ट. देख कर मैं ख़ुश हुई, बधाई दी ये सुन कर की बो अब उन्हीं के साथ काम करता हैँ.
                 कई महीने बाद मुझे उसी के मोहल्ले में किसी काम से जाना हुआ. दूर से वह मुझे दिखे पर लगा जैसे आंख चुराकर भाग गया हो. मैं समझी गलतफहमी होगी मुझसे.... वो तो यहाँ नहीं हैँ.
खैर काम ख़त्म कर जब मै लौट राही थी तो पता चला नौकरी छोड़ कुछ बनने की नशे में मुंबई चला गया था पर खाली हाथ लौट आया. अब झूठ का दामन पकड़ ऐसे ही घूमता हैँ, माँ बाप भी परेशान हैँ.
                             ..।. ऐसो को क्या कहे सपने देख ना पसंद करते हैँ और सच्चाई से मुँह मोड़ लेते. इसमें माँ बाप का अति आसा प्रततसा या कुछ और. इनको तो सही माई ने में मनो चिकित्सा की जरुरत हैँ, या दोस्तों की जो राह दिखा ये.

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