कर्ज़

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कुछ ऐसा देखा कल रात
मैंने अपने सपने में ,
यमलोक से यमराज आये
शुरू हुए सौदा करने में ।

माँ का समय आ गया है
ऐसा उन्होंने बोल दिया ,
"या तेरी माँ चले या तू चल" कहकर
उन्होंने दया की झोली को खोल दिया ।

निसंकोच मैंने खुद को चुना
और यमराज से पुकार लगाई ,
देख मुझे अचंभित हुए
फिर मैंने अपनी दास्तान सुनाई --

अपनी अंतिम श्वास तक
मुझे ये फ़र्ज़ निभाना है ,
मेरी माँ की ममता का
मुझे कर्ज़ चुकाना है ।

नौ माह तक नहाकर दर्द में
न जाने कैसे मुझे पाला है ,
चाहे गर्म, बरसात या सर्द हो
उसने ही मुझे संभाला है ।

रोटियां कम पड़ने पर
क्यों अपने हिस्से का मुझे दे देती है ,
फिर हँसकर भूख न होने का बहाना
कैसे वो करती है ।

लोरी सुनाकर, मुझे सुलाकर
न जाने कब वो सोती है ,
फिर सुबह उठने पर
चाय नाश्ते के साथ खड़ी होती है ।

बिना खुद की परवाह किये
दिन रात हमारी सेवा करती है ,
हम तो छुट्टी में मौज़ करते हैं
पर उसकी छुट्टी कब होती है ?

खुद की इच्छाओं को मारकर
हमेशा हमारी मांगें पूरी करती है ,
हमे बढियां कपड़े दिलाकर
खुद पुरानी साड़ी क्यों पहनती है ?

चाहे जितना गुस्सा कर लो
फिर भी बुरा नही मानती है ,
रूठे हुए बच्चे को कैसे मनाएं
ये सिर्फ एक माँ ही जानती है ।

खुशनसीब हूँ मैं बहुत
जो आज भी उसके आँचल में सोता हूँ ,
उसके पास न होने पे
आज भी मैं रोता हूँ ।

जानता हूँ सारे दर्द छुपाकर
वो भी अकेले में रोती है ,
फिर भी इस दुनिया में
सबसे बड़ी योद्धा माँ ही होती है ।

न जाने ऐसे कितने उसके कर्ज़
अभी भी मेरे सर पर है ,
शायद सब पूरा न कर पाऊं
फिर भी उसका पुत्र जान देने को तत्पर है ।

अपनी अंतिम श्वास तक
मुझे ये फ़र्ज़ निभाना है ,
मेरी माँ की ममता का
मुझे कर्ज़ चुकाना है ।

                         -- अंकित जायसवाल
                    

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