लॉकडाउन का पहला सप्ताह सिन्हा परिवार के लिए बहुत खुशगवार था। कुशाग्र की माँ उसके पसंद के व्यंजन बनाया करती थी; जैसे कि हनी चिली पोटैटो, एग रॉल, चाउमिन, पिज्जा, बर्गर, आदि। आप कहीं इस सोच में तो नहीं पड़ गये कि कुशाग्र विलायत में रहता है। अरे नहीं, वह तो बिहार-झारखंड की सीमा पर स्थित एक छोटे से कस्बे में रहता है और झारखंड में स्थित एक इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता है। अब बदलते जमाने के हिसाब से और लेटेस्ट फैशन के अनुसार उसकी खाने की रुचि भी लेटेस्ट है। वैसे भी आजकल घर में यदि समोसे, जलेबी या रसमलाई आती है तो उसका सेवन तो प्रौढ़ावस्था वाले स्त्री पुरुष ही करते हैं। अभी के बच्चों को तो एक कटोरी गरमागरम मैगी दे दो बस उसी में संतुष्ट हो जाते हैं। एक सप्ताह बीतने के साथ ही कुशाग्र की नौकरी जिस कम्पनी में लगी थी उसके एचआर विभाग से एक ईमेल आ गया। उस ईमेल में शुरु के कोई दो सौ शब्दों में तो कोरोना और मानवता के बारे में लंबे चौड़े प्रवचन लिखे थे। आखिरी पंक्तियों में लिखा था कि भविष्य में संभावित आर्थिक मंदी को देखते हुए कम्पनी ने तत्काल प्रभाव से नई नियुक्तियों पर अनिश्चितकाल के लिए रोक लगा दी है। उसके बाद उस ईमेल में कुशाग्र के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की गई थी।
जब कुशाग्र ने यह खबर अपने माता पिता को बताई तो उनके ऊपर तो जैसे बिजली गिर गई। बहुत देर तक सिन्हा जी के मुँह से एक शब्द नहीं निकला। बड़ी चिरौरी करने के बाद तो बैंक मैनेजर उनके बेटे की पढ़ाई के लिए कर्ज देने को तैयार हुआ था। उसने चेताया भी था कि आजकल बीटेक करने वाले बहुत छात्रों को नौकरी नहीं मिलती है और जिनको मिलती है उनमें से अधिकतर को यही कोई चालीस पचास हजार रुपये प्रति माह की नौकरी मिलती है वह भी बड़े शहरों में। अब बड़े शहरों में मकान का किराया इतना अधिक रहता है कि उसके बाद खाने पीने के लिए ही मुश्किल से पैसे बचते हैं। ऐसे में कर्ज अदायगी में अधिकतर छात्रों को बहुत मुसीबत का सामना करना पड़ता है। लेकिन शायद कुशाग्र के नाम के अर्थ ने या शायद सिन्हा जी के पुराने संबंधों ने अपना काम कर दिया था कि उसे पढ़ने के लिये कर्ज मिल गया था। अब सिन्हा जी इस सोच में पड़े थे कि यदि नौकरी नहीं लगी तो अगले महीने से कर्ज की किश्त कैसे अदा होगी। इस के बारे में जब उन्होंने कुशाग्र से बात करनी चाही तो वह बिफर पड़ा। कहने लगा कि उन्हें क्या पता कि आजकल प्लेसमेंट कितनी मुश्किल से होता है। उसने बताया कि उसके कॉलेज से उसके बैच के लगभग सत्तर प्रतिशत छात्रों का प्लेसमेंट अब तक नहीं हुआ था और न ही भविष्य में होने वाला था। एकाध सही मायने में कुशाग्र होते हैं जिन्हें डॉटकॉम वाली कम्पनियों में मोटी तनख्वाह के ऑफर मिलते हैं, लेकिन इस साल तो वह भी नहीं होने वाला। जब सिन्हा जी ने गेट के इम्तहान की तैयारी की बात की तो कहने लगा कि जितनी पढ़ाई करनी थी उसने कर ली और अब जीवन में दोबारा किताबों की ओर देखना भी नहीं चाहता। फिर आखिर में उसने कहा कि सिन्हा जी को चिंता करने की जरूरत नहीं क्योंकि उनका बेटा कुछ न कुछ ऐसा करेगा जिससे वह अपने नाम को चरितार्थ करेगा। उसने वादा किया कि वह जल्दी ही कुछ ऐसा करेगा जिससे उसके बाप को उसपर गर्व होगा। इतना कहने के बाद कुशाग्र अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट गया, कान में इयरफोन की घुंडी ठूँसी, लैपटॉप ऑन किया और पिल पड़ा अपने दोस्तों के साथ पबजी खेलने में।
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इंजीनियर बेटा
HumorThis story is about the effect of corona pandemic on placement season in educational institutions in India. The pandemic is resulting not only in loss of jobs but also in zero generation of new employment opportunities.
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