अंतःमन फिर जगा एक बार

145 7 4
                                    

अन्तः मन फिर जगा एक बार
इस द्वंद्व को तू दे जगह एक बार
फिर समर में हो फतह की पुकार
ऐसे तू उठ और दे हुंकार

जाग उठ सोच बस ये कटार
है अस्त्र तेरा है शस्त्र हज़ार
जिसमे लहू बहाने को नही है धार
अब तू समझ युद्ध का आधार

इसमे नही सीमाओं को करना पार
न ही जिउ छीनने की मारा मार
ये द्वंद्व है भीतर का एक प्रहार
तू अंतःमन तो जगा एक बार

गहराइयाँजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें