सुन तो ले ज़रा

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सुन तो ले ज़रा मेरी कहानी है ये
कहने को भले पुरानी है ये
पर अब भी मेरी ज़िंदगानी है ये
सुनानी आज मुह ज़बानी है ये

फिर मुह मोड़ लेना ऐ मुसाफिर
आज बस की परेशानी है ये
दिल बलबलाता है फिर
मेरी ही है, ना बेमानी है ये

सुनाना तो चाहा है कई बार
पर आंखों का पानी है ये
छलक जाता है इक आह पर
जैसे ये तान आनी ही है

मेरी सोहबतें कम नही हैं मगर
उनकी आंखें जैसे अनजानी ही है
ज़बाँ पे आते आते रुक जाती है बात ये
कहानी आज भी छुपानी ही है ये

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