ये हसीन वादियाँ
जिनमें गुन्जती थीं प्यार की बोली
सुनाई देती है अब चीख-ओ पुकार,
आवाज़े गोली।
लाल-लाल फूलो की वादियाँ,
लाल न रहे फिर भी लाल हो गईं ।
दरख़्त तो दरख़्त पत्ते तक कटीले हो गए,
इनको सहलाने से अब हाथ ही छिलेंगे।
डालियों से बारूद की बू आती है,
पूरी की पूरी घाटी मौत का जाल हो गई।
अबके पतझड़ में जड़ो तक पानी पहुचाना है,
क्योंकि, फिर से एक बार कोपलें ज़रूर फूटेंगी,
फिर से एक बार घाटी में सदाए ज़रूर गूंजेंगी।
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मैं मानव हूँ
Poetryकुछ छोटी कवितायेँ, हमारे आस पास समाज में दिखाई देने वाली परिस्थितियों को उजागर करती हुई....