कच्चे डोर

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 दुखी मै भी थी की रिश्ता है मेरा टूटा,

बंधी थी उस डोर से जो था झूठा ।


लोगों की नज़रों से बच मैं कर भी चली,

खुद से पूछती, आखिर थी क्या मेरी गलती?


शुरू का रिश्ता कमज़ोर होता है,

Adjust, तो थोड़ा लड़की को ही करना पड़ता है।


चलो मान ही लिया आपलोगों का कहा मैंने, मैं ही हू वो, जो संभाल न सकी,

आखिर काम तोह ये मेरा ही था न , क्यूंकि ठहरी मै लड़की |


अब बोलें आपको जो भी बोलना है , कमसेकम आपके हसीं के तो काम आई,

आधा गाला घोंट के रखा था जिस ज़िंदगी ने , उस पिंजरे से तोह निकल पायी।


एक पड़ाव आएगा, जब मैं फिर से नए गीत गुनगुनाउंगी,

लेकिन माफ़ करना ओ ग़ैरों, नए सफर में मुझसे और adjustment, न हो पायेगी।।


आशा करती हूँ आपलोगों को कविता पसंद आए।  :-)


कच्चे डोर ( Kacche Dor)Kde žijí příběhy. Začni objevovat