दुखी मै भी थी की रिश्ता है मेरा टूटा,
बंधी थी उस डोर से जो था झूठा ।
लोगों की नज़रों से बच मैं कर भी चली,
खुद से पूछती, आखिर थी क्या मेरी गलती?
शुरू का रिश्ता कमज़ोर होता है,
Adjust, तो थोड़ा लड़की को ही करना पड़ता है।
चलो मान ही लिया आपलोगों का कहा मैंने, मैं ही हू वो, जो संभाल न सकी,
आखिर काम तोह ये मेरा ही था न , क्यूंकि ठहरी मै लड़की |
अब बोलें आपको जो भी बोलना है , कमसेकम आपके हसीं के तो काम आई,
आधा गाला घोंट के रखा था जिस ज़िंदगी ने , उस पिंजरे से तोह निकल पायी।
एक पड़ाव आएगा, जब मैं फिर से नए गीत गुनगुनाउंगी,
लेकिन माफ़ करना ओ ग़ैरों, नए सफर में मुझसे और adjustment, न हो पायेगी।।
आशा करती हूँ आपलोगों को कविता पसंद आए। :-)
ČTEŠ
कच्चे डोर ( Kacche Dor)
PoezieRank 2 in Shayri on 21 Dec 2022 Rank 4 in Poetry collection on 21 Dec 2022 Divorce.. Such a big word in our life.. Breaking a relationship is not an easy task and that too a married one but stay strong and don't let anyone bother you because of yo...