कविता: संक्रांत

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आज है संक्रांत का दिन
पतंर के रंग-आकार भिन्न।

पतंग है खुली आजाद हवा में उड़ती;
अपने आप गगन में झूमती।

दिखाती है सफलता की ऊंचाई
मेहनत के बिना हाथ न आई।

तिल गुड़ खाओ और बांटते जाओ
खुश रहो और खुशियां फैलाओ।

दोस्तों के साथ पतंग उड़ाओ
और बस मज़ा करते जाओ।

संक्रांत की तुम्हे ढ़ेरों शुभकानाएं
तुम्हारा त्यौहार खुशियों से भरा जाए।

My Brainwork 1: Collection Of PoemsWhere stories live. Discover now