@@@@@@आदम खुदा से अपना हक मांगता है
बेजान सी जिंदगी में जरा सा अरक मांगता हैजन्नत ओ जहन्नुम की खुदा जाने
कयामत से पहले बस शफक मांगता हैमहर ओ मह ओ नुजूम से भरे इस कायनात में
जमीं पर एक अपना सा घर मांगता हैना अंबर मांगता है ना समंदर मांगता है
जीने का सलीका ओ सबक मांगता हैअक्स-ए-क़लक़ मांगता है ना कयामत से पहले
अपने हक का गुल्सितान-ए-शफक मांगता हैQuoted by-- Aria
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तसव्वुर (Urdu Poetry)
Poetryकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती है ........ (जब सहबा ए कुहन....) और जबसे सुना है उनके खयालात हमारी कब्र को लेकर जनाब! हमें तो अब मरने से भी मोहब्बत हो गई ...... (मोहब्बत हो गई...) इ...