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तेरी नज़रें मुसलसल बयां कर रहीं
मेरे ज़ख्मों पे फिर से हवा कर रही
मेरे ज़ख्मों को फिर ये हरा कर रही
तेरी नज़रें हमें फिर तबाह कर रहींफ़ना कर रहीं ना रिहा कर रहीं
ना जाने सितम हम पे क्या कर रहीं
ना दवा कर रहीं ना दुआ कर रहीं
तेरी नज़रें हमें फिर तबाह कर रहींना वफ़ा कर रहीं ना दफ़ा कर रहीं
ख़ता कर रहीं ना कजा़ कर रहीं
हम पे सज़ा पे सज़ा कर रहीं
तेरी नज़रें हमें फिर तबाह कर रहींदगा कर रहीं हर दफ़ा कर रहीं
बेवजह कर रहीं जो रज़ा कर रहीं
मुसलसल हमें क्यूं ख़फ़ा कर रहीं
तेरी नज़रें हमें फिर तबाह कर रहीं
Quoted by-- Aria
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तसव्वुर (Urdu Poetry)
Poetryकिस गुल से हुस्न टपकता है किस खुश्ब की रवानी रहती है तेरे नर्म होंठो की अरक हर गुलशन की कहानी कहती है ........ (जब सहबा ए कुहन....) और जबसे सुना है उनके खयालात हमारी कब्र को लेकर जनाब! हमें तो अब मरने से भी मोहब्बत हो गई ...... (मोहब्बत हो गई...) इ...