ज्योति मौर्या और उसके पति के बीच इस संग्राम ने ऐसी ना जाने कितनी सच्ची कहानियों को सामने ला दिया जो समय की धूल में और नाकारा सिस्टम की वजह से जीते जी दफन हो गए। उन्हीं में से एक मर्द की अनसुनी दास्तान जिसका सच जानने में कोई भी इंटरेस्ट नहीं है। जब एक प्यार करने वाला पति अपनी पत्नी के सपनों को साकार करने के लिए खुद के सपनों का बलिदान कर देता है तो लगता है कि सच्चे प्रेम का इससे अच्छा कोई उदाहरण नहीं हो सकता। किंतु जब वही पत्नी अपने पति पर दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करवा देती है तो वो पति टूट जाता है। पत्नी की आजादी के लिए समाज से लड़ने वाला पति देव कुमार सक्सेना स्वयं जेल की काल कोठरी में बंद है। रोज-रोज समाज के तानों से मिले जख्मों से रिसता लहू वो फिर भी बर्दाश्त कर लेता लेकिन उसकी पत्नी के आरोपों से उसका मन छलनी हो गया है। शायद उसे इंसाफ कभी मिलेगा भी नहीं।