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विडम्बना का जग  by AdarshBrahmachari
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विडम्बना का जग by Adarsh Brahmachari
रीत मैं सेहमे, प्रीत के भय में । क्यों हम ना बहते, क्यों कुछ ना हम कहते । काल्पनिकता के चेते , क्यों आलोकिक्ता के भय में। स्वतंत्रता का जग यह, विडम्बना इसे कहते , सब एक...