आज सोचा कि किताबों से रूबरू हो लूं,
आज सोचा कि कुछ पन्ने पलट लूं,
आज सोचा कि अपने कदमों को रोक लूं,
आज सोचा कि बीते हुए पलों से गुफ्तगू कर लूं।पर जब मैंने किताबों से रूबरू होने,पन्ने पलटने, कदमों को रोकने और पलों से गुफ्तगू करने के बारे में सोचा,
तब तक मेरी जिंदगी में हो चुका था लोचा।
जिंदगी में हमेशा भागने की चाह रही मुझे ,
और ऐ समय मैं पीछे छोड़ता गया तुझे।
पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी,
भोर की जगह सायं हो चुकी थी।
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हिन्दी काव्य
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