आरक्षण क्यों ?

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असल मामला यह है की दलित में जो लोग थोडा पढलिख  गये है और रोजी रोटी के मामले में थोडा आत्म निर्भर हो गये है, अब आपको उन से डर लगने लगा है क्योंकी वो अब आपके एकाधिकार वाले क्षेत्र में आप से बराबरी की हिम्म्त जो कर रहे है. अब आपकी सामंति मानसिकता को यह कैसे स्वीकार होगा की जो कल आप के रहमो करम पर था वो आज आप के बराबर बैठने की हिम्मत कर रहा है. इसलिये अब आप गरीबी कि दुहाई देते है क्योंकी आप को मालूम है की गरीब तो आप से प्रतिस्पर्धा करने के लायक है नहीं.

अगर 45% मार्क्स और उम्र में 5 साल की छुट का समीकरण समझना है तो आप को  यह भी समझना होगा की 15% स्वर्ण 85% प्रतिशत पदों पर केसे?. क्या आपको मालूम है की मानसिक गुलामी क्या होती है. यह उसी का असर है वरना एसे क्या सुरखाव के पर आपमे लगे हुये है की 15% स्वर्ण 85% प्रतिशत पदों पर काबिज है. इन 65 सालों में दलित वर्ग जग गया है और अनचाही गुलामी से मुक्ती चाह्ता है. इसलिये इसे सम्मानपूर्वक मुख्यधारा में शामिल किया जाये. जिससे आपका सम्मान भी बना रहे. वरना यह काम अब वो खुद भी कर लेगा. फिर कल यह ना कहना की हम 15% को बस 15% ही? कोटे को सामान्य से भरने पर इस लिये रोक लगाई गई क्योंकी वहां पर भी आपने चाल चलनी शुरू कर दी थी. हमारे उम्मीदवार रहते हुये भी आपने यह दिखाकर की कोई कोटे का उम्मीदवार नहीं है उसे सामान्य से भरना शुरू कर दिया. वेसे आरक्षण सिर्फ सरकारी संस्थाओं में ही तो है, बाकी सारा कारोबार तो आपका है, निजी संस्थान, स्कूल कालेज आपके, व्यव्साय आपका, अब कुछ तो हमारे लिये भी छोडीये. या आप अब भी चाह्ते है की 85% आबादी आप के रहमो करम पर जिये...?..

आज आरक्षण कुछ हद तक सरकारी कार्यालयों और संस्थानों में ही कारगर हो रहा है. पर इधर भी ठेके पर काम कराने की चलन जोर शोर पर है. आरक्षण का मजाक उडाती ठेकेदारी. सरकारी अनुदान पर चलने वाले निजी संस्थानों का हाल और भी बुरा, अपने लिये सस्ती दरों पर जमीन, और रियायतें लेने में सबसे आगे पर जब सवाल आरक्षण का हो तो बोलती बंद. अगर आप खुद कि उन्नति से ज्यादा देश की उन्नति चाहते तो आप कैसे 85% प्रतिशत आबादी को सिर्फ इसलिये नंजरदांज कर सकते है कि वो आपके द्वारा बनाये गये मापदंडॉ पर खरी नहीं है. यह आपकी ना समझी ही तो है की आप इस ताकत को अभी तक नहीं समझ पा रहे. अगर आप इतने ही होनाहार है तो हर हाथ को काम और हर पेट को सुनिश्चित कर दो फिर देखो आरक्षण का मुद्दा अपने आप खत्म हो जायेगा. वरना यह काम अब इन 85% पर छोड दो.

आपकी सोच और समझदारी तो अब देश की आम जनता को वेसे ही समझ आ रही है ..केसे अपने निजी स्वार्थों के लिये  देश को बेचने से भी शर्म नहीं करते है. कोई बतायेगा की विदेशी बेंको में जमा लाखों करोडों रूपये किस के है?..ओह हां याद आया आरक्षण फिल्म पर रोक लगाने जेसा कुछ भी नही है. यह उसे सस्ती लोकप्रियता भर दिला रहा है. बजारवाद का एक नया रूप. चलो अच्छा ही है, इस बहाने इस फिल्म को लोग देखेगे...वरना फिल्म कब आती और चली जाती किसी को पता भी नही चलता...

दुर्वेश

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