Muawiya Zafar Ghazali Mustafai

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मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्तफ़ाई एक मनमोहक अति सुंदर व आकर्षक व्यक्ति हैं, अगर बात करें इनकी विशेषता की तो ये एक दार्शनिक, एक स्वतंत्र लेखक, एक कार्यकर्ता, एक प्रेरक वक्ता, एक समाज सुधारक, एक प्रभावशाली व्यक्ति, एक समाजवादी, एक स्वतंत्र लेखक, एक शोधकर्ता, एक भावुक कवि, एक उपन्यासकार, एक नाटककार, एक निबंधकार, एक पटकथा लेखक, एक लघु कहानी लेखक, एक कानूनी अध्ययन अनुसंधान केंद्र में शोधकर्ता एवम् मिस्र व ईरान के विश्व इस्लामी केंद्र से स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। इसके अलावा क़ुरैश और क़ुरैशी सादात के महान भव्य सुनहरा एवम् पवित्र परिवार से संबंधित हैं तथा पवित्र व्यक्तित्व इब्ने शाकिर-उल्लाह हुज़ूर सेठ शाह हाजी बरकतउल्लाह क़ुरैश क़ुरैशी नक़्शबंदी अलैहिर्रहमा बॉम्बे महाराष्ट्र के पोते हैं।

इनके कुछ छंद अति लोक प्रिय हुए हैं जैसे....

फ़िरौन का अंदाज़-ओ-लहजा हम को ना दिखाना
शाह हमने हर इक दौर के जाबिर से बगावत की है

नूर ही नूर के क़ुरआन से चेहरे पे वो नूरी आँखें
उनकी इंजील सी पलकों में खुली ज़बूरी आँखें

मैं हज़रत-ए-अ'ब्बास का नौकर हूँ
और सैय्यद-ए-हुसैन मेरे मालिक हैं

शाह टकरा गया वो मुझ से ईमान के लिए
फिर मिरे ईमां से उसका कुफ्र बिख़र गया

ग़ज़ाली बस यूँ तिरी याद में दिन-रात मगन रहता है
अल्लाह दिल धड़कना तिरी वहदत की सदा लगता है

शाह दिल ठंडा है अल्लाह के ज़िक्र से मिरा
सो देख इस बर्फ़ ने क्या आग लगा रक्खी है

इक अल्लाह है जो दिल में बसा रहता है
शाह ये ईमान है जो तन्हा नही होने देता

दिल में बुग्ज-ए-फ़ातिमा और ज़ुबां पर मुस्तफ़ा मुस्तफ़ा
तमाम इबादत को खा जाएगी इक शिक़ायत-ए-फ़ातिमा

दूर वाला भी हो अहले सुन्नत तो अपना भाई
घर में कोई गुस्ताख़ तो उसकी मैय्यत छोड़ दे

मेरे क़ल्ब पे बोझ रहा ज़हन भी परेशां हुआ
बुतपरस्तों को देखकर मेरा बड़ा नुक़्सा हुआ

जिस्म सस्ते है बोहोत ही सस्ते
इतने सस्ते की निकाह महंगे हैं

हमे फिर मिटाने की ज़ालिम साज़िश कर रहे हैं
अपनी औकात से बाहर की ख़्वाइश कर रहे हैं

ग़ज़ाली हमे ज़माने में ढूंढने वाले
एक दिन ज़माने में हम को ढूंढेंगे

शाह जाता है ख़ून उजले परों को समेट कर
ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं कर्बल पे लेट कर

ना हुक़ूमत कभी मत उलझना ख़ुदाई से
ख़ुदाई बादशाहों से हुक़ूमत छीन लेती है

इसके अलावा आपने अपनी तन्हाई का इक अनोठा तथा अनोखा परिचय समाज को दिया था की,

मेरे साथ मेरी दुनियाँ में मेरी सबसे पुरानी साथी रहती है, मैं जब भी जहाँ से वापस आता हूँ या ख़ुद के अंदर से वापस आता हूँ, तो वो मेरा इस्तकबाल करती है मुझे गले लगाती है मुझे लाड करती है मुझे प्यार करती है इतना ही नही बल्कि घंटो-घंटो मेरे साथ बैठ कर मुझ से बाते करती है, क्या आपने नही देखा कितनी अनोखी है मेरी तन्हाई॥

इस जानकारी की पुष्टि अल्लामा हसन अली की किताब हुस्ने क़ायनात के करम नामे, हाफ़िज़ मख़दूम हुसैन के रिसाले हक़िकत के फैज़ नामे, मौलाना अबुल फ़ज़ल इमाम की किताब तिब्बियात के अहसान नामे, प्रोफेसर सीएनआर राव की किताब इंदजीत के शुभचिंतक पृष्ठ तथा सोलह अन्य पुस्तकों आदि से की गई है तथा यहां मुआविया ज़फ़र ग़ज़ाली मुस्ताफ़ाई का पूर्ण जीवन परिचय नही बताया गया है अनेकों जानकारी गुप्त रखी गई है। धन्यवाद॥

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