संस्कृतं श्लोकाः

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1.उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रवि-शन्ति मुखे मृगाः।।
अर्थः- यानि, उद्यम से ही कार्य पूर्ण होते हैं, केवल इच्छा करने से नहीं। सोते हुए शेर के मुख में मृग स्वयं प्रवेश नहीं करते.
2.गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् । वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः ॥
अर्थः-हम उसके लिए ना पछताए जो बीत गया. हम भविष्य की चिंता भी ना करे. विवेक बुद्धि रखने वाले लोग केवल वर्तमान में जीते है.
3.काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च
स्वल्पहारी, गृहत्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणं।
अर्थः-एक विद्यार्थी को कौव्वे की तरह जानने की चेष्टा करते रहना चाहिए, बगुले की तरह मन लगाना(ध्यान करना) चाहिए, कुत्ते की तरह सोना चाहिए, काम से काम और आवश्यकतानुसार खाना चाहिए और गृह-त्यागी होना चाहिए |
यही पांच लक्षण एक विद्यार्थी के होते है |
4.अलसस्य कुतो विद्या ,अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रम् ,अमित्रस्य कुतः सुखम् ॥
अर्थः-जो आलस करते हैं उन्हें विद्या नहीं मिलती, जिनके पास विद्या नहीं होती वो धन नहीं कमा सकता, जो निर्धन हैं उनके मित्र नहीं होते और मित्र के बिना सुख की प्राप्ति नहीं होती ।
5.आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः ।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ॥
अर्थः-आलस मनुष्य का (अपने खुद के ही शरीर में रहने वाला बहुत बडा दुश्मन है। और मेहनत जैसा कोई बन्धु नहीं है; जिसे (यानी मेहनत) कर के मनुष्य (कभी भी) दुखी नहीं होता है।
6.येषां न विद्या न तपो न दानं,ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता,मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति
अर्थः- जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म।
वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं।

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⏰ Last updated: Nov 21, 2023 ⏰

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