नववर्ष

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हर साल नया साल आता है
सदियों से यहि होता आया है
नया अपनाकर पुराना भूल जाते हैं
पुराना बिना उफ किये चुपचाप चला जाता है
सौंप देता है नववर्ष को पूरे विश्वास के साथ
अपने अधूरे काम
अपने सपनें
अपना स्थान
छप जाता है अखबार के पन्नों पर
सुरक्षित रहता है इतिहास बन कर
स्वभाव है मानव का पुराना बना दो कबाड़
नई पौध लगा पुरानी दो फैंक उखाड़
यही है मानव का स्वभाव
नये का स्वागत करो फैला कर हाथ
नववर्ष में हो हर्ष ही हर्ष
कोहिनूर सा चमके भारत वर्ष
नववर्ष में हो नये आयाम
सब मिलकर करें देश का उत्थान
विश्वास की शमा करे घर घर रौशन
मुफ्तखौरी के जाल से जाये निकल
कर्मठ हाथों से करें इक दूजे का सहयोग
तभी सुरक्षित स्वस्थ भविष्य से होगा योग
स्वरचित शमा खन्ना

नववर्ष Where stories live. Discover now