आखिर कौन था वह, वो अकेला इस रेगिस्तान में रह रहा था? जहां दूर दूर तक कोई घर नही। कही वो कोई लुटेरा तो नहीं? जलापुर ले जाकर मुझे ठगेगा तो नहीं? ऐसे कई सवाल मेरे जेहन में डर की पैदाइश कर रहे थे। आखिर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे पुछा,

"जी आपको कैसे पता की मुझे जलापुर जाना है?"

" आपके गले में टांगे कॅमेरे से। जलापुर की तसवीरें कैद करने यहाँ कई कैमरा वाले आते है।" उसने मुस्कुराकर कहा।

"सुना है, लोगो को वहाँ के जले, टूटे खंडरो की तसवीरें खींचना पसंद हैं?"

"हाँ, लोगो को तबाही का तमशा देखना बेहद पसंद हैं।" यह कह कर वो खुद अकेला जोर जोर से हसने लगा।

"जी आपका नाम क्या है जनाब?" मैंने बात आगे बढ़ते हुए पुछा।

"आगाज, नीचे देख कर चलिए जनाब, गीली मिट्टी बचा कर, वो इंसान को अंदर खीच लेती है।" उसने अपना नाम भी बताया और साथ में एक सलाह भी दी। मैं अब रेत में जमीन देख कर पाँव रखने लाग।

"काफ़ी महंगा कैमरा लिए तस्वीर खींचते हो जनाब, काफ़ी तजुर्बागर लगते हो।" अगाज ने कहा।

"नही इतना तजुर्बा नहीं… अभी तो शुरुआत है।" मैंने जवाब में कहा।

आगाज फिर जोरों से हसने लाग। उसकी आये बात पर हसने की यह आदत मुझे पसंद नहीं आयी। मैंने उससे चिढ़कर पुछा,

"इसमे हँसाने वाली क्या बात हैं?"

" माफ़ करना जनाब, लेकिन आपके जुमले का वो लफ्ज़...वो सुन कर हसी रोक न सका।" उसने अपनी सफाई में कहा।

"कौनसा लफ्ज़?" मैंने पुछा।

"वो....शुरुआत" उसने कहा और वो फिर हँसने लगा।

"क्या आपने यह लफ्ज़ पहली बार सुना है?" मैंने पुछा।

"बिल्कुल नहीं जनाब, हां एक वक़्त था जब इस लफ्ज़ से हम बिलकुल वाकिफ़ नहीं थे पर अब शुरुआत इस लफ़्ज़ पे एक किताब छाप दूँ ऐसा किस्सा है मेरे पास। वही कुछ यादें याद आ गायी।" अगाज ने कहा।

शुरुआतDonde viven las historias. Descúbrelo ahora