Untitled Part 45

2.5K 80 6
                                    

तीसरे  दिन  उसे  हॉस्पिटल  से  छुट्टी  मिल  गयी  लेकिन  आयशा  तो  हॉस्पिटल  में  थी  ही  नही।   वो  तो  पहले  ही  कहीं  जा  चुकी  थी। विनय  ने  उसे  ढूढ़ना  भी  ज़रूरी  नही  समझा  और  चुप-चाप  घर  आ  गया।

संध्या  बार-बार  विनय  से  पूछती-“पापा,मम्मी  कब  आएगी?”पर  विनय  उसे  कोई  जवाब  नही  देता।

शायद  आयशा  ने  जहर  खाने  से  पहले  कोई  खत  लिखा  हो। ये  सोच  कर  विनय  पूरे  घर  में  खत  ढूढ़ने  लगा  उसे  कोई  खत  तो  नही  मिला  पर  एक  डायरी  मिली  उसमें  कुछ  खत  भी  रखे  हुए  थे। विनय  ने  रात  को  संध्या  के  सोने  के  बाद  उस  डायरी  को  पढ़ना  शुरू  किया।

लिखा  था-

“मैं  16  साल  की  थी। उसी  समय  मेरी  दीदी  की  शादी  हुई  थी। दीदी  की  शादी  बड़े  घर  में  हुई  थी। उनके  पास  पैसों  की  कोई  कमी  नही  थी  पर  दीदी  कहती  थी  कि  वो  दहेज  की  माँग  करते  हैं,उसे  दहेज  के  लिए  मारते  हैं  जबकि  मुझे  या  घर  में  किसी  और  को  ऐसा  कुछ  भी  नही  लगता  था। जीजा  जी  के  व्यवहार  से  ऐसा  कभी  नही  लगा  की  उन्हें  दहेज  चाहिए  या  फिर  वो  दीदी  को  दहेज  के  लिए  मारते  होंगे। एक  दिन  पता  चला  की  दीदी  ने  खुद  को  आग  लगा  ली। आग  उन्होने  खुद  लगाई  थी  या  फिर  किसी  और  ने  हमें  नही  मालूम  था। हम  किसी  के  खिलाफ  कुछ  नही  कर  सके। बाद  मे  पता  चला  की  उन्हें  जला  कर  मारा  गया  था। मुझे  ये  नही  मालूम  की  उनके  साथ  ऐसा  क्यों  किया  गया  था  पर  इस  हादसे  ने  मेरे  अंदर  शादी  को  लेकर  एक  डर  पैदा  कर  दिया  था  मुझे  लगता  था  की  अगर  मेरी  शादी  भी  ऐसी  ही  किसी  जगह  हुई  तो  मेरे  साथ  भी  ऐसा  ही  कुछ  होगा। दीदी  की  मौत  के  बाद  मैंने  खुद  पर  ध्यान  देना  बहुत  कम  कर  दिया  था। मैं  बहुत  अस्त-व्यस्त  हो  गयी  थी। दीदी  के  साथ  हुए  हादसे  को  1  महीने  बीत  गये।   इस  बीच  मैं  खुद  में  बहुत  सीमित  हो  गयी  थी। मैंने  अपने  दोस्तों  से  बोलना  भी  छोड़  दिया  था,किसी  को  कोई  खास  फ़र्क  नही  पड़ा  पर  अभय  जो  मेरे  साथ  पढ़ता  था  उसे  मुझसे  बोले  बिना  नही  रहा  जाता  था  वो  मुझसे  प्यार  करता  था  लेकिन  मुझे  ये  प्यार  जैसी  चीज़  बेकार  लगती  थी। कई  बार  जब  वो  ज़्यादा  पीछे  पड़ा  रहता  था  तो  मैं  उससे  बोल  देती  थी। मुझे  उससे  थोड़ा  भी  लगाव  नही  था  पर  वो  इतना  अच्छा  था  कि  मैं  उसे  कुछ  कहती  भी  नही  थी। स्कूल  से  मेरा  घर  करीब  2किलोमिटर  था,इस  बीच  कुछ  रास्ता  सूनसान  भी  था,उस  हादसे  के  बाद  मैंने  हर  किसी  से  बोलना  छोड़  दिया  था  इसलिए  मैं  अकेले  ही  आया-जाया  करती  थी। एक  दिन  मैं  स्कूल  से  आ  रही  थी,मैंने  ध्यान  दिया  की  कुछ  लड़के  मेरा  पीछा  कर  रहे  थे। मैंने  इस  बात  को  किसी  से  नही  कहा  और  अकेले  ही  स्कूल  आती-जाती  रही,पर  शायद  वो  लड़के  मेरा  हर  रोज  पीछा  करते  थे। वो  मेरी  उम्र  के  ही  थे। मुझे  उनसे  डर  भी  लगता  था  पर  फिर  भी  मैंने  अपना  रास्ता  नही  बदला। एक दिन स्कूल से वापस लौटते समय उन लड़कों ने मेरा अपहरण कर लिय। वो लोग मुझे अपने साथ किसी खाली मकान में ले गये। वहाँ कोई और नही था। उन तीनों ने मेरे साथ............. । अगली सुबह वो मुझे वापस उसी जगह छोड़ गयें। मैंने खुद को संभाला और अपने घर आ गयी। घर पर सब मुझे ही ढूढ़ रहे थे। मैंने सारी बात अपनी माँ को बता दी। उन्होंने मुझे चुप रहने के लिए कहा। मुझे लगा था कि वो उनके खिलाफ कुछ करेंगी ,पर उन्होंने मुझे किसी से कुछ भी कहने के लिए मना कर किया। मैं पूरी तरह से टूट गयी थी। मेरा  दिल  कहीं  भी  नही  लगता  था,मन  करता  था  की  जहर  खा  कर  मर  जाऊं। मैं  कभी  अभय  से  जुड़ना  नही  चाहती  थी  पर  हालात  ही  ऐसे  थे  कि  मुझे  उससे  जुड़ना  पड़ा  क्यों  कि  वो  मेरे  जीने  की  वजह  बना,उसने  मुझे  फिर  आगे  बढ़ने  की  हिम्मत  दी। हर  कदम  पर  मेरी  मदद  की। धीरे-धीरे  मेरी  अभय  से  अच्छी  दोस्ती  हो  गयी। मैं  हर  बात  उसे  बताने  लगी,शायद  मैं  उससे  प्यार  भी  करने  लगी। मैंने  सोच  लिया  था  कि  मैं  शादी  करूँगी  तो  सिर्फ़  अभय  से। जो  मुझे  अभी  बिना  किसी  रिश्ते  के  इतना  समझता  है  वो  किसी  रिश्ते  में  बाँधने  के  बाद  कितना  समझेगा। मैंने  अभय  को  कभी  भी  यह  अहसास  नही  होने  दिया  की  मैं  उससे  प्यार  करती  हूँ। अपने  प्यार  को  अपने  दिल  में  ही  दबाए  रखा। 2 साल  तक  हम  दोनों  ने  एक  दूसरे  से  कुछ  नही  कहा  लेकिन  2  साल  बाद  जब  12वीं  में  थी  अभय  ने  मुझसे  अपने  प्यार  का  इज़हार  किया। मुझे  जिंदगी  में  इतनी  खुशी  कभी  नही  हुई  जितनी  उस  पल  हुई  लेकिन  मैंने  जो  किया  वो  खुद  मेरी  समझ  से  बाहर  था। मैंने  उसे  मना  कर  दिया। उसने  मुझे  मनाने  की  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  नही  मानी  जबकि  मैं  खुद  उससे  प्यार  करती  थी। उस  दिन  के  बाद  से  हम  दोनों  ने  एक-दूसरे  बोलना  छोड़  दिया। इसलिए  नही  की  हम  दोनों  एक-दूसरे  नफ़रत  करने  लगे  थे  बल्कि  इसलिए  की  ना  तो  उसे  मुझसे  अपना  दर्द  छुपाने  की  हिम्मत  थी  ना  ही  मुझ  में  उसे  मना  करने  कि  कोई  वजह  दे  पाने  की  ।

दूरियाँ (Dooriyan) #wattys2017Where stories live. Discover now