खुदा की रहमत कहें या दिल का दस्तूर
मिला एक दोस्त जो था अजनबी सा मशहूर
ना समझदार था ना सयाना था
उसे तो बस इस पूरी कहानी में एक ज़रूरी भाग निभाना था
जब होता था ये दिल उदास
वो दोस्त चला आता था उसके पास
ना चाहते हुए भी बैठना पड़ता था उसके पास
क्योंकि वो था ही बहुत शैतान
ये दिन फिर बीतने लगे
और शुरू होने लगी एक नई कहानीगम उसके साथ छोटे लगने लगे थे
खुशी से पांव मेरे उड़ने लगे थेहर दिन वो दोस्ती का
बहुत ही हसीन था
क्योंकि ऐसा दोस्ती का रिश्ता मेरे अधीन था