नहीं माँगते सोना चाँदीदे दो थोड़ी सी बासी रोटी
नहीं चाहिये घी और मक्खन
रख दो पास में पानी का बरतन
इस विशाल धरती पर घर अपना
हरे भरे पेड़ का छोटा सा कोना
चाहत नहीं हमारी!
एयरकंडीशन्ड कमरों में सोना
चाहत है छोटों से दिल की!
उन्मुक्त गगन में उड़ना बस उड़ना
छोटा सी उम्र है अपनी,छोटे-छोटे सुंदर पर
छू लेंगे आकाश दूर से ,उड़ कर इधर उधर
बंद पिंजरों का जीवन भी क्या जीवन है?
इस पेड़ से उस पेड़ पर ही असली जीवन है
खुले गगन में उड़ान भले ही कम रह जाती है
ऊँचा उड़ने की अभिलाषा हौंसला बढ़ाती है
पिंजरे में रोटी-पानी-सुरक्षा सहज ही मिल जाती है
खुले गगन की सूखी रोटी अंतस की भूख मिटाती है
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स्वतंत्र पक्षी
Não ficçãoपंछी गगन में उड़ते हुये अच्छे लगते हैं उन्हें अपनी स्वतंत्रता प्यारी लगती है