चुन्नू की चाय

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वो मुस्कुराता चेहरा, कई सारे ख्व़ाब, कई ख़्वाहिशें, कई हसरतें और कई अरमान. कैसा हो अगर उन सभी ख्वाहिशों और अरमानों को कुछ चुनिंदा लम्हे ज़ज्बे और हौसलों के रंगों से उस मुस्कुराते चेहरे पर बसी दो प्यारी आँखों में भर दे. कैसा हो अगर सिर्फ़ एक पल उसकी सारी दुनिया बदल दे. कैसा हो अगर सिर्फ़ एक पल उसे इतनी हिम्मत दे दे की वो मुश्किल हालातों से लड़ने को तैयार हो. सोचने या बोलने में शायद नामुमकिन सा लगता है पर है तो सच. सिर्फ एक लम्हा ही काफ़ी होता है किसी को ऊर्जा से भरने के लिए जो उसे सफलता की ऊँचाइयों पर ला खड़ा कर सकती है. कुछ ऐसा ही हुआ है हमारे कहानी के किरदार चुन्नू के साथ.

चुन्नू जो हमेशा की तरह अपने ख़्वाबों के इन्द्रधनुषी संसार में कई रंग के सपने और हर सपने से जुड़े संसार में खोया है, उसी चाय की टपरी के कोने में जहाँ वो काम करता है. इसी तरह वो घंटों-घंटों बैठा रहता है उसी कोने में जब तक की चाय टपरी के मालिक नन्दूराम का तगड़ा हाथ उसकी पीठ पर अपने निशा नहीं छोड़ जाता. आज भी नन्दूराम का तगड़ा हाथ चुन्नू की पीठ पर और उसकी ख़राश भरी आवाज़ चुन्नू से साथ पडता है और ला खड़ा कर देता है उसे, असल दुनिया में.

साले चुन्नू, शेख़-चिल्ली उठ और ऑफिस नंबर १०५ में ये चार चाय सक्सेना साहब के केबिन में लेकर जा. दिन-भर जा जाने किस उधेड़बुन और ख़्वाबों की रंगीन दुनिया में खोया रहता है. साले कुछ काम करेगा तो, खाने को कुछ मिलेगा. ख़्वाबों से किसी का पेट नहीं भरता. जा अब जल्दी से चल देकर आ. और सुन हमेशा की तरह वही मत रुक जाना.

चुन्नू वही खड़े सब चुपचाप सुनता रहा और कुछ देर बार एक हाथ में चाय का ट्रे और दूसरे हाथ से अपनी पीठ मलता चुन्नू निकल पडता है ऑफिस नंबर ५०१ की तरफ. वैसे चाय टपरी से ऑफिस का रास्ता है तो सिर्फ़ ५ मिनट का मगर चुन्नू ये रास्ता तकरीबन १० मिनट में तय करता है. इस छोटे से सफ़र में वो कई कीर्तिमान रच चुका होता है, कई पुरूस्कार अर्जित कर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा चुका होता है, कई असंभव से लगने वाले लक्ष्य अपनी कड़ी मेहनत से हासिल कर चुका होता है. आज भी उसने कुछ ऐसा ही किया और छोटे-छोटे क़दमों से अपने ख़्वाबों के पुलों को पार करता पहुँच जाता है सक्सेना साहब के केबिन तक.

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