11.समय और हम

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ये उमरें फिसलती जा रही हैं
ये रातें ढलती जा रही हैं
ये दिन बस बीते जा रहे हैं
और लोगों को लगता है
कि हम जिंदगी जीते जा रहे हैं ।

ये शामें भी बस गुजराती जा रही है
ये दोपहर भी कटते जा रहे हैं
ये आशाएं टकराती जा रही हैं
ये हवाएं भी शायद
आंखें बंद करवाती जा रही हैं।

कलाइयों पर तो सजी है घड़ियां
और समय , हाथों से निकलता जा रहा है
लगता ही नहीं ,
कि हम यह समय जीते जा रहे हैं
शायद हम भी बस बीते जा रहे हैं ।

~पूनम शर्मा

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