थोड़ी खाली जगह चाहती हूं
थोड़ी देर अकेला रहना चाहती हूं
शहर की इस रोशनी से दूर
थोड़ी देर अंधेरे में बैठना चाहती हूं ।थोड़ा खुद से मिलना चाहती हूं
कुछ सोचना चाहती हूं
शहर के इस शोर से,
थोड़ा दूर जाना चाहती हूं ।आंखों देखी चीजें भी ,
अनदेखा करना चाहती हूं
मन भी नहीं मान रहा
पर मैं इसे मनाना चाहती हूं ।अनजाने से इन रास्तों पर
घूमना मैं भी चाहती हूं
चलते-चलते
हंसना तो मैं भी चाहती हूंपर पता नहीं क्यों ,
थोड़ा दूर जाकर मैं रुक जाती हूं
आगे तो मैं भी जाना चाहती हूं ,
पर मंजिल कहीं बगल से ना निकल जाए
यह सोच कर मैं डर जाती हूं।~पूनम शर्मा