3. सुकूं: एक तालाश

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मैं सुकूं की तालाश में हूं
यह दुनिया है कांटो भरी ,
पर फिर भी मैं बस फूलों की आस में हूं ।
इस झूठ भरी दुनिया में मैं ,
पता नहीं क्यों ...सच की तलाश में हूं ।
मैं हर किसी से बस ,
नेकी की आस में हूं ।
शायद ,मैं किसी गलत तालाश में हूं।

तारों भरी इस महफिल में,
मैं वह चांद खास हूं,
जो बस दिखाने में पास हूं।
पर असल में मैं,
बहुत अकेली और उदास हूं।
सुकून के नाम पर, अंधेरी इस रात में,
तारों की छत के नीचे
बस इस चांद को देखने की आस में हूं।

यह रात की शांति और बसंत की खुशबू ,
ऊपर से यह ठंडी हवा,  लगता है जैसे,
एक अलग से एहसास में मैं हूं ,
मानो जैसे खुशी के पास में मैं हूं ।
यह तारों भरी छत ,
यह चांद की रोशनी ,
यह हवा में महक ,लग रहा है जैसे
इस खुले आसमान में दुनिया से कहीं दूर ,
सुकून के पास में मैं हूं ।
मैं भूल गई की अकेली या उदास मैं हूं ।

कुछ पल के लिए,
जब यह खुद का शोर खत्म हुआ ,
तो एक धीमी सी आवाज आई कि,
अरे, तुम्हारे खुद के पास ही तो मैं हूं।
               ~पूनम शर्मा

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