6. आसमां के रंग

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जहां की इस सुंदरता को कैसे मैं बयां करूं
सुंदर से इन नजारों को कैसे मैं शब्दों में भरूं
आंखें तो भरी है ,
लेकिन कैसे मैं यह पन्ना भरूं ।

चंद पल ठहरते हैं ये रंग आसमान में
और बरसों के ख्वाब दिखा जाते हैं
खुद तो बिखर जाते हैं पलक झपकते ही
और हमारे लिए उम्रों की कहानियां बन जाते हैं।

इस जहां की सुंदरता को
वह इस तरह से दर्शा जाते हैं
कि कभी-कभी तो
पूरे पूरे मौसम भी शर्मा जाते हैं।

मन तो कर रहा है कि यहां से कहीं नहीं जाऊं
इस आसमान को बस देखते ही रह जाऊं
अंधेरा बढ़ रहा है, यह मैं खुद को कैसे समझाऊं
सफर भी अभी बहुत है
मुझे डर है ,कि कहीं मैं यहीं ना रह जाऊं

                                  ~पूनम शर्मा

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