वक़्त थमने लगे तो , बचपन से चल के कब इतने बड़े हो गए पता ही नही चला आज भी दो वक्त बचा के पुराने दिन याद करने पे आखो से आंसू निकल आते हैं और लगता है जैसे कुछ वक्त पहले की ही बात थी कितने बेहतर दिन थे ,फिर ना जाने क्यों ही ना हमे बचपन मे बाड़े होन की सोची हो। आज इस मासिक तनाव की ज़िंदगी जीते हुए बचपन के कुछ पल सहजा किये है नोट: हो सकता है आपको बहुत जगह गलतियां मिले मगर मैं जो अप्प हिंदी लिखने मैं इस्तेमाल कर रहा हु उसे जितना बेहतर हो सके गया मैं प्रयास करूंगा। धन्यवाद।