हमने उदासीयो को सदियों से दिल मे छुपा के रखा
हैं,
तुझको पाने की चाहत मे अपना सर झुका के रखा
हैं!
गिर गए हम जब कई बार अपनो की नजर के
सामने,
टूटे हुए कांच के टुकड़ो को जमीन से उठा कर रखा
हैं!
बारिश का क्या भरोसा आज कल जब चाहा आती
हैं,
बिस्तर मे हमने तकिये का हर कोना सुखा कर रखा
हैं!
महंगा हुआ है थोड़ा बहुत अब राशन हर दुकान
में,
मेज पर खाना आ गया है ठंडा मगर झूठा कर रखा
है!
आज के इस दौर में खेल ए राजनितिक किसे
समझाऊँ,इस झील में उन गरीबो का हर आँशु डूबा कर रखा
हैं!
हम मिट ही जाते तो अच्छा था क्या भरोसा तेरा
ख़ुदा,
एक दिन तो आना बाहर इस पेट को भूखा कर रखा
है!
हर रोज खामोशियो में यादे तलबगार होती हैं बहोत,
हालाते मजबूर हैं इस लिये खुदा को जुदा कर रखा
हैं!अब क्या बिसात ऐ पुजारी के ख्वाब छत से देखा
जाए,
चार दिवारी के अंदर ही जलता हुआ चुल्हा कर रखा
हैं!
माँगता कहाँ हूँ मैं तूझको आरे तुझसे क्या भिख ले
लूँ,
छीन कर भी ले सकता था हक मगर रुला के रखा
हैं!
💓💔
#निखिल_मिश्रा
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