Part one

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प्रिय पाठकों,

नमस्ते,

आप सभी लाॅकडाउन के दौर से गुजर रहे है। तो यह काल्पनिक कहानी भी इसी दौर की है। (सभी पिक्स Pinterest से साभार...)

"सुर्ख लाल जोड़ा

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"सुर्ख लाल जोड़ा..."
( एक काल्पनिक लघुकथा )

"सुर्ख लाल जोड़ा.."
( एक काल्पनिक लघुकथा )
Words1666, Complete story.
Reading time 6 minutes.

1.

कितने दिन गुजर गए पता न चला। न अखबार था और न कैलेन्डर...

और दिन भी क्या खाक गुज़रे ? बस दो वक्त का खाना और पीने को पानी, वो भी दो घंटे लाईन में लग कर। एक बार उसे अच्छा भी लगा। वक्त ने उसे सरकारी दमाद बना दिया। नही वो वाला दामाद नहीं, इस बार सचमुच का सरकारी दामाद। कोई बात नहीं जो संडास बदबू से भरे थे और हर बात में लाईन लगानी पड़ती थी। बड़ी बात थी हुकूमत को उसका ध्यान था।

उसकी परेशानी यह थी कि इतने दिन बैठे-बैठै खाने और आलसी की तरह पड़े रहने से उसके हाथ पाँव दर्द से पिराने लगे। पुलिस ने शेल्टर होम से बाहर जाने पर पाबंदी लगा रखी थी। नहीं तो वह ज़रा चार छह किलोमीटर घूम आता, और अपने हाथ पाँव की अकड़न जकड़न भी दूर कर लेता। उपर से दारू तो दूर बीड़ी के लिये भी तरस चुका था। दारू तो खैर उसकी घरवाली ने भोले की कसम दे कर छुड़वा दी थी लेकिन बीड़ी न छोड़ सका। बस ताज़ा दम होने को एक आध बीड़ी सुलगा लिया करता था वो भी अब बस खत्म होने को थी।

भोले का तो वो भक्त था। कितनी बार कांवर ले कर बाबा बैजनाथ को जल चढा आया था।

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