64.माँ

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मैं कला की कुछ पंक्तियाँ
आपके नाम लिखतीं हूँ
कुछ भी लिखने से पहले
आपको प्रणाम करती हूँ।।

अक्सर कवी अपनी रचनाओं में
नायिकाओं का नखशिख वर्णन करते हैं
लेकिन मेरे लिए मेरी नायिका,
मेरा भगवान मेरा गुरु
केवल तुम हो, इसलिए
तुम्हारा रूप वर्णन करती हूँ
मैं कला की कुछ पंक्तियाँ
आपके नाम लिखतीं हूँ।।

तुम दर्द का सागर
भीतर छुपाए रखती हो
दुःख के दरिया में भी
आँसू दबाए रखती हो
दया की प्रतिमूर्ति
ममता की खान हो
मैं अपनी देविस्वरूपा माँ को
झुक्कर सलाम करती हूँ
मैं कला की कुछ पंक्तियाँ
आपको भेंट करती हूँ।।

जो कुछ करती हो
बच्चों की ख़ुशी के लिए करती हो
दूसरों को रौशनी देकर
उनका अँधेरा हरती हो
दुखों को अंदर दबाकर
चेहरे से मुस्कुराती हो
मैं आपकी इस मुस्कराहट के राज़ को
सलाम करती हूँ
मैं कला की कुछ पंक्तियाँ
आपके नाम करती हूँ।।

कुछ हो मगर हर पल
दिल के पास रहती हो
अपने बहुत हैं दुनियां में मगर
आप हरदम ही ख़ास रहती हो
दिये की तरह खुद जलकर
हम सबको प्रकाश देती हो
माँ तुम्ही मेरी हिम्मत, तुम्ही विश्वास हो
भावना, संवेदना और अहसास हो
विचार बहुत हैं, बयाँ करना कठिन है
इसलिए अब विराम करती हूँ
मगर वादा है आपसे कि
हर कविता आपके नाम करती हूँ
मैं कला की कुछ पंक्तियाँ
आपके नाम करती हूँ
और अंत में एक बार फिर
मैं आपको प्रणाम करती हूँ।।

Hi and namaskar,

This is the last entry in this collection of poems. Hope you all enjoyed this. Please don't hesitate to drop a line of what you think about these.

Read my other story "Forever..." if you like romance with twists ;)

Thank you all for voting and commenting:)

Enjoy reading!!

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