जरा याद इन्हे भी कर लो

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13-14 की उम्र के बच्चे जब मां बाप के साये तले  मोज मस्ती मे मगन रहते है

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13-14 की उम्र के बच्चे जब मां बाप के साये तले  मोज मस्ती मे मगन रहते है. उसी उम्र मे दौर मे एक शख्स उठ खडा हुआ जुल्म के खिलाफ, उसने विद्रोह किया निरंकुश सत्ता के खिलाफ . एसी सत्ता के खिलाफ जिसके राज मे कभी सूरज नही ढलता था. स्कूल जाने की कच्ची उमर मे वो उठ खडा हुआ उस जुल्म के खिलाफ जो उसके चारों ओर हो रहा था.

उसका विद्रोह धर्म और जात के नाम हो रही लूट और धोखाधडी के खिलाफ भी था. वो एसी सोच के खिलाफ था जिसमे इश्वर ही सर्वोपरी था जिसके नाम पर कमजोर बजुबान जुल्म सह रहे थे और उसे अपना भाग्य समझ रहे थे . वंही कुछ रसूखदार उसी इश्वर के नाम पर लोगों को मानसिक और शरारिक गुलाम बना रहे थे. जिसके नाम पर अधिकांश  जनता को बेवकूफ बनाया गया था, कमजोर बनाया था, धर्म और जात के नाम पर बांटा जा रहा था. उसने समझा की फूट डालो और  राज करो सिर्फ अंग्रेजों का मूल मंत्र नही है यह तो हमारी संस्क़ृति मे ही रचा बसा है, जिसे अंग्रेजों ने पहचाना , समझा और हमारे विरूध इस्तेमाल किया. 

उसने इतनी छोटी सी उमर मे ही समझ लिया की जो कुछ भी गलत हो रहा है उसकी जिम्मेदारी पहले खुद पर है

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उसने इतनी छोटी सी उमर मे ही समझ लिया की जो कुछ भी गलत हो रहा है उसकी जिम्मेदारी पहले खुद पर है. उसने बताया की हम पर कोइ जुल्म इसलिये कर पा रहा है क्योंकी हम अपने उपर जुल्म होने दे रहे है. उसने कहा की जो कुछ भी गलत हो रहा है उसको सही करने की जिम्मेदारी उनकी खुद की है. उसने गरीबी और गुलामी का कारण खुद मे खोजने को कहा. उसने एसे इश्वर की अवधारणा को त्यागने मे ही भलाइ समझी, जो कमजोरो पर जुल्म होते देखता हो. जो मानव से मानव को अलग करता हो. जो गरीब को और गरीब और अमीर को और अमीर बनाता हो. जिसके नाम पर एक दूसरे का गला काटने से भी नही डरते हों.  

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⏰ पिछला अद्यतन: Apr 09, 2016 ⏰

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