बाबा अब तो नीचे आ जाओ या पूरा दिन वहीं रहने का इरादा है , शंभू के नीचे खड़े रामू काका मुझे बुला रहे थे मेरी और शंभू की बचपन की दोस्ती थी हम साथ -साथ बड़े हुए थे, कहने को वो मुझसे उम्र मैं थोड़ा बड़ा था पर इस बात का कभी कोई फ़र्क नही पड़ा करीब दस साल पहले जब हम इस कॉलोनी में रहने आए थे तो यहाँ मेरी उम्र का कोई नही था, ज़्यादातर बच्चे या तो बोर्डिंग में पढ़ रहे थे या फिर बहुत बड़े घरों के थे जो मुझ जैसे मध्यम वर्गीय लड़के से दोस्ती करना अपनी शान के खिलाफ समझते थे में अकेला अपने घर के आँगन मे खड़ा रहता, शुरू में तो कभी उस पर मेरा ध्यान ही नही गया , पर एक दिन जब एक बकरी हमारे बगीचे में घुस आई और उसने शंभू को खाने की कोशिश की , तब मैने उसकी जान बचाई और उस दिन से वो मेरी ज़िम्मेदारी बन गया
अब में अकेला नही था , मुझे शंभू के रूप में एक दोस्त मिल गया हर रोज घंटो में उसके पास बैठा रहता था , बकरी से बचने के लिए मैने उसके चारों तरफ पत्थरों की एक बाढ़ लगा दी , अब में अपने दोस्त की सुरक्षा के लिए निश्चित था मास्टर जी क्लास में पड़ा रहे होते और में घंटा बजने के इंतजार में रहता , कि कब वहाँ से छुट्टी मिले और में शंभू से जाकर मिलूं उसका नाम शंभू कैसे पड़ा इसकी भी एक मजेदार कहानी है , में हमेशा माँ से जब पूछता था कि मेरा नाम किसने रखा तो वो कहती पंडित जी ने , उस समय मेरा ये मानना था कि जो भी भगवा कपड़ा पहनता है वो पंडित होता है एक दिन एक भिखारी भगवा कपड़ा डाले हुमारे दरवाजे पर आया तो मेरी आँखें चमक उठी और जब मेने उसे अपनी मंशा बताई तो वो हमारे एक पुराने बर्तन के बदले , नामकरण को तैयार हो गया ये बात दूसरी है कि उस बर्तन को बिना पूछे देने के लिए ,मेरी पिताजी से बहुत डाँट पड़ी पर मेरे दोस्त को एक नाम मिल गया शंभू
समय अपनी चाल चलता गया, कभी - कभी में अपना दूध का गिलास उसकी जड़ो में अर्पण कर आता था , इससे दो मतलब हल हो जाते थे , एक वो मुझसे बड़ा था और उसे ताक़त कि ज़्यादा ज़रूरत थी और दूसरा मैं दूध पीने से बच जाता था और दूध बर्बाद करने कि ग्लानि भी महसूस नही होती थी अब वो मुझसे भी बड़ा हो गया , मैं घंटों उसकी गोद में बैठकर पूरे दिन क़ी रामायण उसे सुनता था , आज मास्टर जी ने ये पढ़ाया, रामू काका ने ये खाना बनाया ,बाबूजी ड्यूटी को देर से गये और वो बड़ी शान्ती से मेरी सारी बातें सुनता रहता और अपनी डालियों को ज़ोर-ज़ोर से हिलाकर जैसे हामी भरता
माँ, बाबूजी ने कभी मुझे शंभू के पास जाने से नही रोका उसने भी अपनी पूरी दोस्ती निभायी , मेरे बचपन में बाँटे गये दूध का बदला उसने बहुत सारे अमरूदों के रूप मे दिया , पर एक दिन हमारे बिछड़ने का वक्त आ गया , बाबूजी का ट्रान्स्फर दूर के एक शहर मैं हो गया और हमें वो घर छोड़ना पड़ा हालाँकि मैने थोड़ा प्रतिरोध किया, पर बारह साल क़ी उम्र में ,मेरे अकेले वहाँ रहने क़ी ज़िद को किसी ने अहमियत नही दी उस दिन सुबह हल्की - हल्की बारिश हो रही और हम एक कार में चल दिए ,मेरे गाल नम थे पता नही बारिश क़ी वजह से या कुछ और छूट रहा था
धीरे - धीरे इस बात को काई साल बीत गये और मैं भी अपने जीवन में व्यस्त हो गया पढ़ाई , व्यापार , शादी , बच्चे , समय जैसे हवा के एक झोंके के समान निकल गया मेरा रीएल स्टेट का व्यापार जम गया ,और हमने काई जगाहों पर ज़मीन खरीद-खरीद कर घर बनाने शुरू किए हर कोई हमारे साथ जुड़ना चाहता था , काई लोग हमारे पास जगह के नक्शे लेकर आते थे हम लोगों का सीधा नियम था क़ी बेचने वाला जगह साफ करके दे और अपनी कीमत ले ले , हम सिर्फ़ साफ-सुथरी ज़मीन पर घर बनाते थे ताकि फालतू परेशानियों से बच सकें उस दिन भी कोई मेरे पास आम दिनों क़ी तरह से एक नक्शा लेकर आया , मेरी आँखें चमक उठीं क्यों कि वो मेरे बचपन के शहर से आया था उसने मुझे बताया कि जगह मज्ज़िद के ठीक सामने है ,वहाँ बस दो चीज़ें थी जो हमने हटवा दी , एक पुराना जर्जर मकान और एक अमरूद का पेड़ |