चार दिन?

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चार दिन रही तू साथ मेरे, काश ज़िंदगी भी चार दिन की होती,

मैं कैसे पढु कोई किताब जिसमे, मैं तेरा, तू मेरी नहीं होती,

तुझसे बिछड़ कर जो हाल है, सोचता हूँ,

काश तू मुझसे कभी मिली ही नहीं होती,

साथ हूँ उसके मगर ख़्याल है तेरा,

कम से कम आज तो तेरी याद आयी ना होती,

मैं फिसला इश्क़ में, और मुसल-सल फिसलता ही गया,

काश मुहब्बत की लहरों में काई ना होती,

लग गई हवा दुनिया ज़माने की मगर,

ना लगती हवा तो मुहब्बत सिताई ना होती,

चार दिन रही तू साथ मेरे,

काश ज़िंदगी भी चार दिन की होती!

~कुशाग्र

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⏰ Last updated: Apr 01 ⏰

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मुझे भुला दोगे?Where stories live. Discover now