मन मे चल रही अजब व्यथा है!
शब्द भंडार मेरा मुझसे खफा हैं!!
बोलना चाहता हूं खुदसे मगर!
मै खुद ही चुप और शांत हूं!!उदास हूं ख़ुद लेकिन तुमसे नाराज़ हूं!
वजह ना मुझे समझ आती खामोशी की!!
तुम्हें क्या ही बताऊँ अपनी पीड़ा जान!
उम्मीदो का भंडार थी तुम थी मेरी शान!!रोग वियोग किसका मुझे ये तुम पूछती हो!
सुख चैन छीन के मेरा मासूम बनती हो!!
कोई बात नहीं जो दिल तुमने तोड़ ही दिया!
दुनिया थी तुम मेरी आखिर मुंह मोड़ ही लिया!!अब तो ख्वाब मे भी तुम्हारे ख्वाब नहीं है!
जिंदा हूं मै देखो मगर तुम्हारा प्यार नहीं है!!
रकीब ही चाहिए था अरे तो बोल ही देतीं!
मै मर ही जाता तुम धोखेबाज़ तो ना होतीं!!खैर तुम्हें तुम्हारा नया जीवन मुबारक!
आजाद मैं तुम्हें खुदसे कर रहा हूं!!
जी लूंगा तुम्हारे बिना भी अच्छे से!
मै आखिरी वादा तुमसे कर रहा हूं!!©Brahaminsud
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