हम और अहम

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फोन की घंटी लगातार बज रही थी ,मैं न जाने, कब से अपने सुहाने ,सपनों में खोई हुई थी ।आँख खोल कर देखा खिडकी से सूरज नई सुबह का आगाज़ कर रहा था। उठी और मैंने अपने मोबाइल को चार्जर से हटा कर चेक किया, 7 मिस कॉल्स थे।
पर मैं नाम देखकर विचलित हो गई थी, फिर भी नजाने, ना चाहते हुए एक अनजाने से डर के साथ, मैंने कॉलबैक किया, दूसरी तरफ से उसी शक्स की आवाज थी, जिसे मैंने अपनी आजादी के लिए खुद चुना था। आज वही शख्स का कॉल करना ,मुझे कुछ खास पसंद नहीं आया, फिर भी ,अनमने भाव से मैंने वापस कॉल बैक किया था ,फोन की दूसरी तरफ से बार-बार हेलो हेलो ,की आवाज आरही थी, और मैं यथार्थ में लौट आई, उसने बताया मैडम सारी दुनिया सामान्य हो चुकी है ,सारे 10वी तक स्कूल और कॉलेज खुल चुके हैं और अब तो कोर्ट भी शुरू हो गया है, वह बताता गया पर ना जाने कैसे मैं, किन ख्यालों में खो गई थी, एक बार फिर मैडम, मैडम ,हेलो ,हेलो की आवाज ने मुझे जगाया ।  मैंने उससे पूछा, कब की तारीख है ,तो वह बोला -"15 दिन बाद की तारीख मिली है ,फाइनल हियरिंग है,"।
आप सही समझे ,यह मेरे लॉयर की आवाज़ थी। आप लोगों को लग रहा होगा क्या चल रहा है ,चलें आप भी मेरे साथ, मेरी कहानी में शामिल हो जाएं ,और चलें उस समय में ,जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी ,मैंने कॉलेज में पहली बार उसे देखा था, लव अट फर्स्ट साइट तो नहीं कह सकते पर हाँ ,कुछ कुछ हुआ था और यही कुछ कुछ , कब कॉफी की टेबल से, डिनर डेट तक ले गया ,पता ही नहीं चला ।और फिर घर वालों की रज़ामंदी से हम लोग  ,एक हुए और जिंदगी हसीन हो गई थी।मेरा गुलाबी और वरुण का नीला रंग अब ईंद्रधनुषी रंगों में बदल चुका था। हमारे सारे मित्रमंडली में हमें आदर्श जोड़ी कहा जाने लगा।
पर जब दो लोग मिलते हैं तो सिर्फ दो लोगों की सोच नहीं बल्कि उनकी सोच सभ्यता और रहन-सहन भी मिलती है, मिलना भी जरूरी है ।आज के दौर में हम चाहे जैसे भी हो हमारा ego बड़ा होता है ।समझौता और सामने वाले की बात ,एकदम से मान लेने को हम अपनी तौहीन समझते हैं।खैर ये तो हर दूसरे घर की कहानी है।
हम दोनों जॉब करते थे दोनों की मिसाइल बढ़ने लगे ,शायद प्रेमियों और पति पत्नी बनने में यही फर्क होता है ।जिंदगी हसीन थी पर पता नहीं कैसे हमारे सोच में मतभेद होने लगे फिर कलह, और साथ रहना दुश्वार हो गया ।
और तब हमने सोचा कि अलग हुआ जाए।
आखिर हम इस बदलते युग के नौजवान थे यहां कपल, कई साल लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद सोचते हैं कि चलो ,नहीं निभ सकती ,अब अलग हो जाए ,या चलो निभ रही है, तो हम शादी कर लेते हैं ।
पता नही मन हमेशा कहाँ भटक जाता है ,में तो आप लोगों को अपनी यानी, रिया और वरुण की कहानी बता रही थी
तो ज़िंदगी चल रही थी काम का तनाव उसपर घर वालों का जोर की-" एक बच्चा हो जाये तो परिवार पूरा हो जाता है रिया ।"
मुझे भी बच्चे की चाह थीं,पर अभी तो बहुत कुछ सवारना था।
तो वरुण और मैंने मिल कर सोचा की चलो 3 साल रुक जाते हैं।निर्णय हम दोनो का था, पर जब इस बारे में घर पर चर्चा होती तो कटघरे में हमेशा मैं ही रहती थी।
समय मानो पंख लगाकर उड़ रहा था। मैंने महसूस किया था पिछले 2 सालों में वरुण का रवैया बहुत बदल गया था ।पहले मुझे लगा आफिस की टेंशन होगी शायद,क्योंकि नए बॉस से हुई अनबन का वरुण ,बहुत बार ज़िक्र कर चुका था।
शुक्र है मेरे आफिस में ऐसा कोई भी मसला नही था । मुझे अभी कुछ महीने पहले ही प्रमोशन मिली थी और तनख्वाह भी बढ़ गई थी। पर फिर धीरे धीरे हमारे बीच हर रोज़ किसी न किसी बहाने से तकरार होने लगी वरुण कहता मुझे अपनी नौकरी का घमंड हो गया है और मुझे लगता वह कमतरी का शिकार होता जा रहा है।
दिन बीतते गए प्यार विश्वास और हँसी ने जैसे अपने रूप ही बदल लिए हो कब कलह, शक और आंसुओ ने उनकी जगह लेली पता ही नही चला ।
अब एक साथ रहना कठिन हो गया तब हमने सोचा कि चलो अलग हो जाते हैं।
कानून का दरवाजा ठक ठकाया तो फरमान मिला 6 महीने साथ रहना पड़ेगा।
मुझे कभी भी समझ नहीं आया कि जब दो लोग अपने रिश्तों से अलग होना चाहते हैं तो कैसे कानून का एक कागज हमारे जज्बात और संबंधों को फैसला कर सकता है।
खैर घरवालों के लाख समझाने के बावजूद हम अपने फैसले पर अड़े रहे।
पर कानून की बात तो माननी ही थी,तो सोचा जहां 4 साल गुज़रें है वहाँ 6 महीने भी कट ही जायेंगे।पर हम ने ,मन ही मन में आगे के जीवन का लेखा जोखा बना लिया था,पर समय बहूत बलवान होता है उसके आगे कभी किसी की नही चली ।
रसोई एक थी पर अब चाय ही नही खाना भी अलग ही बनता था।कमरे अलग हो चुके थे,पैंट शर्ट ने साड़ी दुपट्टे का साथ छोड़ दिया था एक नीला और एक गुलाबी कमरा हो चला था। हाँ पर tv पर न्यूज़ और बाकी कार्यक्रम साथ ही देखते थे ।
और उस शाम मोदीजी का फरमान जारी हुआ लोकडौन का ,हमारे अप्पर्टमेंट में तो 3 लोग covid19 के मरीज थे ,तो अब पूरी तरह से घर मे कैद हो गए ,सारा सामान मंगवा कर स्टोर कर लिया था।
काम वाली को मना कर दिया।
हम जो कि कब के मैं और तुम में बदल गये थे , अचानक से पता ही नही चला कि कब वापस से हम की पटरी पर आ रहे थे।
हम ने मिल कर काम करना शुरू कर दिया था फिर सोचा रसोई और बाकी के काम मिलकर कर लेते हैं।
6 महीनों की अवधि में ढाई महीने बीत चुके थे।
कभीकभी मैं सोचती काश की कोर्ट जाने की नौबत न आती तो आज कितना मज़ा आ रहा होता ।
रिया और वरुण की अलग कहानी होती जिंदगी खुशनुमा होती।
पर शायद ऐसे ही होना था ।लगता पता नही वरुण क्या सोचता होगा। क्या उसे पुराने दिन याद आते हैं? बाहर जाना मुमकिन न था ,तो घर पर ही रह कर काम भी चल रहा था।
और तब अहसास हुआ कि जो काम शादी के 4साल में न कर पाए ,लोकडौन के दौरान जैसे वो एह्साह वापस आ रहे थे। हम अपनी नाराजगी को भूलने लगे थे। रोज़ रात समाचार देखते मोबाइल में messages शेयर करते करते अपने गीले शिकवे भी बाटने लगे और गलतफहमियों को मिटाते चले गए।
शायद वरुण भी भूल गया था और मैं भी,
की हमारा साथ केवल 6 महीनों का था ।
जिसमे से 3महीने बीत चुके थे।
करोना की महामारी ने सारे संसार को विचलित कर दिया था। हमारी सरकार ने भी फिर से लॉक डाउन लगा दिया ,
समय बीतता गया,मैं और तुम से बना हम और
इस हम ने हमारे अहम को लगभग हरा ही दिया था।
पर अब भी हम अलग कमरों मे ही सोते थे।
हम और अहम की लड़ाई इतनी आसानी से नही खत्म होती है ।
उस दिन शाम से ही मेरी तबीयत खराब हो रही थी पहले सर्दी फिर बुखार आ गया मैं डर गई लगा कॅरोना ने डस ही लिया..........
वरुण ने मेरा बडा ही साथ दिया पूरी रात सिर पर ठंडी पटियाँ लगाई।
सुबह covid टेस्ट कराया और रिजल्ट 2 दिन बाद आना था। यूँ तो डॉक्टर ने आश्वासन दिया कि कोई घबराने की बात नही है क्योंकि कोविद का संकेत नही है और हम लोग तो पिछले एक महीने से बाहर भी नही गए न कोई सामान या इंसान घर पर आया।
फिर भी मन उदास था मैंने वरुण को दूर रहनेको कहा पर मेरा बुखार कम ही नही हो रहा था तो वरुण ने मेरी एक नही सुनी बस अब तो जैसे मेरी देखभाल ही उसका काम होगया था।
टेस्ट नेगेटिव आया और हम ने चैन की सांस ली।
अब मै भी बेहतर महसूस कर रही थी।
समय मानो फिर एक बार पंख लगा कर उड़ रहा हो।
अब हम ने अहम को हरा दिया था ।
जिंदगी हसीन और कपड़ों ने फिर से दोस्ती कर ली थी।
और उस सुबह ऐसा लगा कि खिड़की से झांकता सूरज इंद्रधनुशि रंग बिखेर रहा है ।
हाँ, ये वही समय था जब मेरे फ़ोन की घंटी ने बजना शुरू किया था।
मैं जागी और बालकनी में चाय पीने लगी वरुण कब पीछे से आया पता ही नही चला।
वह भी उदास था पर चेहरा मानो बाता रहा हो कि वह एक निश्चय पर पहुंच चुका हो, शायद उसके वकील ने भी फ़ोन किया होगा।
मैं कुछ भी न बोल सकी। शायद हमारी ख़ामोशियोंने अपनी बात कह दी हो ।
वरुण मेरे पास आया और हस पड़ा मैं भी मुस्कुरा दी अब हम जानते थे हमारा निर्णय क्या था।
और तब मुझे एहसास हुआ कि क्यों 6 महीने का साथ ज़रूरी है और क्यों कानून की दखल अंदाज़ी की ज़रूरत है।
हम खुश थे,अब मैं और तुम नही सिर्फ हम थे।
हम जो एक ही कप में दोनों चुस्कियाँ लेरहे थे इस हम में अहम की कोई जगह नही थी ।।लोमा।।

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